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जसकीर्तिकृत सम्मेतशिखर-रास' का सार [ आगरा के कुंअरपाल सोनपाल लोढा के संघ का वर्णन ] .
लेखक-श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटा, भंवरलालजी नाहटा. श्वेताम्बर जैन समाज में ऐतिहासिक सामग्री की उपलब्धि विपुल प्रमाण में होने पर भी उसके अन्वेषक विद्वानों की अल्पता के कारण प्रचुर ऐतिहासिक साहित्य अप्रकाशित दशा में पडा है । ऐतिहासिक साधनों का महत्व समझने वाले साहित्यरसिक पाठकों की कमी के कारण वर्षों पूर्व जो कुछ प्रन्थ प्रकाशित हुए थे उनका भी प्रचार नहीं हुआ और भविष्य में प्रकाशन का मार्ग रुकसा गया । कई विद्वानों के पास प्रचुर ऐतिहासिक सामग्री संग्रहीत पडी है, पर उसके प्रकाशन की सुव्यवस्था नहीं हो पाती। वास्तव में हमारे लिये यह दुर्भाग्य का विषय है। श्रीविजयधर्मसूरिजी के विद्वान शिष्यों ने ऐतिहासिक साधनों के संग्रह एवं प्रकाशन की ओर बहुत सुन्दर प्रयत्न किया था और अब भी आ. श्री विजयेन्द्रसूरिजी एवं विद्याविजयजी महाराज के पास वर्षों से संग्रहीत प्रतिमालेख, ऐतिहासिक रास, प्रशस्तिसंग्रह आदि अप्रकाशित पडे हैं । इसी प्रकार हमारे संग्रह में भी २५०० प्रतिमालेख, ३००० प्रशस्तिये और अनेकों तीर्थमालाएं, रासादि संग्रहीत पडे हैं । उदयपुर के शिलालेख ऋषि अनूपचन्द्रजी के पास संग्रहीत हैं। इसी प्रकार अन्य विद्वानों के पास भी बहुतसी सामग्री अप्रकाशित अवस्था में पड़ी है। हर्ष का विषय है कि सिंघी जैन ग्रन्थमाला द्वारा प्रवे० जैन पेतिहासिक सामग्री को पुरातत्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजी सुन्दरता पूर्वक सम्पादित कर प्रकाशित कर रहे हैं । पर सामग्री की विपुलता देखते हुए कई विद्वानों द्वारा कई ग्रन्थमालाओं से निरन्तर प्रकाशन कार्य होता रहे तभी कुछ कार्य हो सकता। - ऐतिहासिक सामग्री में तीर्थमालाओं का भी विशेष स्थान है, पर अब तक इनका केवल एक ही संग्रह प्रकाशित हुआ है । इसीलिए हमारे तीर्थों का इतिहास समुचित प्रकाश में नहीं आया है । समय समय पर निकलने वाले यात्रार्थी संघों के वर्णनात्मक रासों से तत्कालीन इतिवृत्त पर अच्छा प्रकाश पडता है । इस लेख में ऐसे ही एक यात्रार्थी संघ के रास का ऐतिहासिक सार दिया जा रहा है । यह संघ सं. १६७० में आगरा के सुप्रसिद्ध संघपति कुंवरपाल सोनपाल लोढा ने तीर्थाधिराज सम्मेतशिखरगिरि के यात्रार्थ निकाला था, जिसका वर्णन रास में काफी विस्तार से है । मूल रास ४८३ गाथाओं का है, यहां उसका संक्षेप में सारमात्र देते है। ___ सर्व प्रथम कवि तीर्थंकरों को नमस्कार कर अञ्चलगच्छपति श्री धर्ममूर्तिसरि एवं विजयशील वाचक को वन्दन कर समेतशिखररास का प्रारंभ
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