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मध्यस्थभाषादचलप्रतिष्ठ: सुवर्णरूप : सुमनो निवास : । अस्मिन्महामेरुरिवास्ति लोके श्रीमान्बृहद्रच्छ इति प्रसिद्ध : ॥ तस्मिन्नभूदायत बाहुशाख: कल्पद्रुमाभ: प्रभुमानदेव : । यदीयवाचो विबुधे सुबोधा: कर्णे कृता नूतनमंजरीवत् ॥ तस्मादुपध्याय इहाजनिष्ट श्रीमान्मनस्वी जिनदेवनामा । गुरुक्रमाराधय (य) ताल्पबुद्धिस्तस्यास्ति शिष्या हरिभद्रसूरिः ॥ ७ ॥ - ( जेसलमेरची पृ. २६ )
[३] ( पीटर्सन भा. ३, पृ. ७८से ८२ तक ) सं. १९९०की रचित उक्त आख्यानमणिकोशकी वृत्तिकी प्रशस्ति में श्रीआम्रदेवसूरिने लिखा है
वडगच्छरूपी समुद्र में पारिजात ( कल्पवृक्ष) रूप श्रीदेवसूरि, धन्वन्तरिरूप प्रीअजितसूरि, ऐरावतरूप श्रीआनंदसूरि और अश्वरूप श्रीनेमिचंद्रसूरि नोकि स्तुत प्रकरणके रचयिता एवं उत्तराध्ययनवृत्ति, लघुवीरचरित, रत्नचूडचरिके रचयिता हैं (जानने) । श्रीजिनचंद्रसूरि के दो शिष्यों श्रीआम्र देवसूरि, चंद्रसूरि-मेंसे पहिलेने टीका रची। श्रीजिनचंद्रसूरि के मुख्य तीन शिष्योंमिचंद्र, गुणाकर, पार्श्वदेवगणियों ने इस टीका रचने में सहायता की। लेखन शोधन और उद्धरण आदि भी उन्होंने ही किया (जै. सा. सं. इ. पारा ३५४)
श्रीनेमचंद्रसूरिकी प्रशस्तियोंसे निम्र बातें प्रकट होती हैं -
(१) ख्याति - इन नेमिचंद्रसूरिने जिस गुरुपरम्पराका उल्लेख किया उनकी 'विहारुक' (अर्थात् विहार करनेवाले) ख्याति थी, जैसाकि महावीर - रियकी प्रशस्तिमें श्री उद्योतनसूरिजीका विशेषण 'विहारुक मुनिसन्तानआकाश में श्रेष्ठ पूर्णिमा के चंद्रसमान' उल्लेख किया है एवं उत्तराध्ययमकी त्तिकी प्रशस्ति में भी 'विहारुक' की पहिचानवाले श्रीउद्योतनसूरि ( दूसरे ) देख किये हैं । रही रत्नचूडकी कथाकी प्रशस्ति सो उसमें बिहारुकका लोग तो नहीं है परन्तु जिनकी परम्परा में उक्त उद्योतनसूरि हुए उनके
पट्टधर के साथ 'उद्यत विहार निरत' (अर्थात् विहार ( कार्य ) में लगे एवं उसमें उद्यत रहनेवाले) विशेषण से भी यही प्रकट होता है कि वे भी रवासी न थे अतः इनके पूर्वके पट्टधर श्रोनेमिचंद्रसूरि और उनके पूर्व के दा) पट्टधर श्री देवसूरि भी विहार करनेवाले ही थे और उनकी ख्याति विहारुक होगी ।
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(२) गच्छ - श्री उद्योतनसुरिजीसे महावीरचरियकी प्रशस्ति आरंभ (है तो उसमें पहिले चंद्रकुल और बडगच्छका स्पष्ट उल्लेख है । taraनकी प्रजस्तिका पूर्व भाग अनुपलब्ध है। रही रत्नचूडकी प्रशस्ति, समें गच्छ कुलका स्पष्ट निर्देश तो नही है, परन्तु ये सब 'उद्यतषिfree' श्रीदेवसूरि गच्छमें हुए लिखे हैं और उन्हींके गच्छमें दोनों