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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वडगच्छ कब हुआ? लेखक-श्रीयुत पन्नालालजी दुगड, देहली वडगच्छके उल्लेखवाली कुछ प्राचीनतम प्रशस्तियों में क्या लिखा हुआ है ? सो पहिले मैं यहां पर संक्षेपमें बता देता हूं। [१] पहिले साधु अवस्थामें जिनका नाम देवेन्द्रसाधु था पीछे उनका नाम सैद्धान्तिकशिरोमणि श्रीनेमिचन्द्रसरि हुआ।' बडगच्छके उल्लेखवाली सबसे प्राचीनतम प्रशस्तियां इन्हींकी हैं, जिनमें से कुछ पाटनके भाण्डागारोंकी सूचीमें छपी हुई हैं, उनका आवश्यक अंश उक्त सूचीसे यहां पर उद्धत किया जाता है: (अ) पृ. २८५-२८६, सं. एगारसह अगुयालीसे [११४१] की रचित महावीरचरियकी प्रशस्तिः x x x परिवाडीते जातो चन्दकुले वडगच्छमि ॥ सिरिउज्जोयणसूरी उत्तमगुणरयणभूसियसरीरो। वेहास्यमुणिसंताणगयणवरपुन्निमाइन्दो । xx दो पंक्ति xx जंमि य गच्छे आसि सिरिपज्जुन्नभिहाणसूरि ति । सिरिमाणदेवसूरी सुपसिद्धो देवसूरी य ॥ उज्जोयणसरीस्स सीसो अह अंबदेव उवज्झातो (? ओ) xx एक पंक्ति xx तस्स विणेएण इमं वीरजिणंदस्स साहियं चरियं । पावमलस्स खयट्ठाए सरिणा मिचन्देण ॥ (आ) पृ. २८९-२९०, तिलयसुन्दरि-रयणचूडकहा (जिनपूजाधुपदेश)की वि. सं. १२०८की लिखी हुई प्रशस्ति आसि सिरिदेवसूरी दुवहसीलंगगुणधरो (पाठान्तर गुणगणा)धरणो । उजयविहारनिरओ तग्गच्छे तयणु संजाओ । सिरिनेमिचन्दसूरि कोमुइचन्दव्व जणमणाणंदी। तयणु महिवलयपसरियनिम्मलकित्ती विमलचित्तो ॥ ७ ॥ समणगुणदुव्वहधुराधारणधोरेयभावमणुपत्तो। सिरिउज्जोयणसूरी सोमतणू सोमदिट्ठी य ॥ ८ ॥ धम्मो व मुत्तिमंतो पयपंकयनासियतमोहो । १ देखो रत्नचूडकथा पर श्री आम्रदेवसृरिकी टीका पी. भा० ३ पृ. ७९ । २ पीटर्सन भा०३ पृ०६८ में भी यह प्रशस्ति सं० १२२१ की लिखी हुई प्रति परसे छपी है उसमें आसि शब्द नहीं है । मैंने इस लेखमें जो पाठान्तर लिखे हैं वे इस रिपोर्ट के अनुसार लिखे हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.521576
Book TitleJain_Satyaprakash 1942 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1942
Total Pages46
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size22 MB
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