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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ भासा - विमलचन्द्र उवझाइ भाइ तसु पट्टि प्रसूधी। .
व्रतनी अरु उवझाइ पणौ तसु पछै न कीधी ॥ मानदेवसूरि हुवा वली हरिभद्र मुनीसर । . पूर्णभद्रसूरि नेमिचंद बलि प्रगट सुहंकर ॥ ३३ ॥ गछपति श्रीनयचंद्रसूरि मुनि रतन विदीता। मुनिसेखरसूरि जुगप्रधान अंतर उर जीता ॥ . कावसग्म जिणि मागि (नाम ?) लेया शुभ मनि आई । भट्टनिंग बैठा सेत्रुजै की जिणि आग बुझाइ ॥ ३४ ॥ तिलकसूरि तसु पट्टि हूवा भद्रेश्वर गछपति । सूरि मुनीश्वरसु मणि भट्टारक सुभमति ॥ .. रतनप्रभुसूरि गछधार परमार्थ न जूया । एहथी भट्टारक अनै आचारज हवा ॥ ३५ ॥ नमीयै सुगुरु महिंद्रसूरि रतनाकर सूरे । सूरि मेर प्रभु राजरतन महिमा भरपूरे ॥ सूरीसर मुनिदेव रतनशेखर गुरु लहीयै । पुन्यप्रभुसूरि संजमराज गुरु तसु पट्टि कहीयै ॥ ३६ ॥ भावसूरि उदैराज गछपति गुण आगर । भट्टारक श्रीशीलदेव सूरेन्द्र प्रभाकर ॥ सपरगछ पालंति जिके जिण आग्यामात्र । आचारज उवझाई साहु ते नमो त्रिकाल ॥ ३७ ॥ गछपति श्रीमाणिकदेव गुणवंत समिद्यौ । दामोदर देवसूरि हुवो जगमाहि प्रसिद्धौ ॥ तासु पट्ट नरेन्द्रदेव मिलि संघहिं कीधौ । वैद्यक विद्यागुणनिधान पग बहुली ऋद्धौ ॥ नाम लेह जौ जुगप्रधान तिह संकट भाजै। ..
प्रात उठि जौ नाम लेहि तिहि नवनिधि साजै ॥ इति श्री बृहद्गछीय गुर्वावली समाप्तेति । चिरंजीवी दलपतिराइजी पउनार्थ । शुभं भूयात् । पीछे से अन्य व्यक्तिके लिखितः
तास पट्ट पंडित हूवौ जगमाहि प्रसिद्धगुटकेका लेखनकालःसं. १७४९ आषाढ सुदी ९ स्टेट लाइब्रेरी गुटका नं. ११४ अन्यत्र लेखनकाल
संवत १७५१ फा. सु. ७ र. तातहड) गोत्रे साह पंचायण प्रदलसाहजी पठनार्थ श्वेताम्बर हेमहर्षेण लिपी चक्रे ।
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