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दोहराः
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બૃહુગીય ગુર્વાલિ
अंबाई गिरनारि जाइ आराधी तप करि ॥ सीमंधर जिण पासि गइ सूरिमंत्र दीयो तिणि । विद्यागुरु हरिभद्रसूरि जेहनौ भाई पिणी ॥ २२ ॥ विबुधसूरि प्रभु जयानंद आचारज वंदौ । रविपसूरि हुव महंत नामि पाप निकंदौ ॥ सात सुप दस जिण संवत नडूलनगर जहं । चैत्यप्रतिष्ठा करीय जेणि प्रासाद प्रगट जहं ॥ २३ ॥
जसोदेव प्रनसूरि गुणवंत चरणधर । मानदेवसूरि तासु पट्टि वलि हुवा सुगुरु ॥
जोग अनै उपधान तणी विधि जिण महि लहीयै । 'विधिप्रभा' तिणि ग्रंथ कीयौ गछपति सो कहीयै ॥ २४ ॥ विमलचंद गुरूचरण नमो अडसर बावीसह । स्वर्णसिद्धिनी लब्धि हूंती उपगार जगीसह ॥ चित्रकूटि नै गोपालगिरि जिणबिंब पतीठा । जीत दिगंबरवाद तिहां धने तै जिण दीठा ॥ २५ ॥ श्रीउद्योतनसूरि हूवा तिहु से परिवारै । लोकडीया वडहेठि जेठि आठमि रविवारै ॥ नवसै चौरानवें (९९४) वरसि थाप्या बहु सीसैं । वेली देखी अमीयतणी सूरीस जगीसै ॥ १६ ॥ सर्वदेवसूरि वडौ शिष्य तिणि पाटि भट्टारक । हुवा प्रसिद्ध बडगछ तहा भवियण उपगरिक । दससे दस संवत जेणि चंद्रप्रभस्वामी । करीय थापना चारि सूरि पदवी वलि पामी ॥ २७ ॥ रूपवंत रूपदेवसूरि सर्वदेव मुनीसर । जसोभद्रसूरि नेमचंद्र मुनिचंद्र सूरीसर ॥
बार वस्तु उपरांति विगइ परित्याग कीयां तिणि । आछण पाणी आव जीव आंविलतप कीयो जिणि ॥ २८ ॥ देवसूरि बादी हुवौ दिपै भाग निलवट्टि । ग्यारह से चौहत्तर गुरु थाप्यो निज पट्टि ॥ २९ ॥ दक्षिन थी आयो तबै खमणौ पंडित एक ॥ अनहलपुर पाटण वसै सितपट तहां अनेक ॥ ३० ॥ तिणिस्यौ वाद न करि सकै देवसूरि विण कोइ ॥ रण झहिं केम सूरि विण पह प्रगट जगि जोइ ॥ ३१ ॥ छम्मासै खमणौ जितौ कीयो जैन उद्योत ॥
पहिरत को मुनि वस्त्र तनि जै/इहु सुगुरु न होत ॥ ३२ ॥
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