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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [10] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [વર્ષ ૭ प्रभ वर सज्यंभव नमो जसोभद्र संझय ॥ भद्रवादु गुरु थूलभद्र श्रुतकेवली छ हुई ॥ ११ ॥ थूलभद्र धन धन्य गुरु ब्रह्मचर्य प्रतिपाल । चौरासी चौवीसीय जस कहि नमि मुनिमाल ॥ १२ ॥ महागिरि अनै सुहस्ति गुरु सुस्थित नाम मुणिंद ॥ इंद्रदिन्न गुरु सीहगिरि पूरव विद्याकंद ॥ १३ ॥ वयरस्वामि दस पूर्वधर वंदति देव जगीस ॥ जिनसासन मंडन हूवा वज्रसेन तसु सीस ॥ १४ ॥ तास सीस चारै प्रगट चारै दिपै दिणंद ॥ चंद्र अनै निवृत्त हूवा विद्याधर नागिंद ॥ १५ ॥ भासा - चंद्रसूरि सामंतभद्र आरण्यकवासी। सेञ्ज अणसण निमित्ति गुरु चलीया विमासी ॥ आया कोरंटा सा ग्राम तह चैत्य निवासी। संवेगी देवचन्द्र नाम देख्यौ सुडदासी ॥ १६ ॥ दीधी उपसंपदा तिसही आचारच थाप्यौ । वडौ देवसूरि जुग प्रसिद्ध तसु नाम सुआप्यौ ॥ गुण छतीस विराजमान गछपति ए कहिये । प्रद्योतनसूरि तासु पट्टि गीतारथ लहीयै ॥ १७ ॥ जयविजय अपराजिता ए पदमावति देवी । सुहगुरु नामत चरनकमल वंदइ ते सेवी ॥ मानदेवसूरि तासु सीस शांतिस्तव कीधौ । संघउपद्रव तिणी निवार जगमाहि जस लीधौ ॥ १८ ॥ आचारज देवेन्द्रसूरि बहु प्रकरणकारक । जिनसासन आधार सार प्रगटयौ गणधारक ॥ मानतुंगसूरि जिण किया भक्तामर भयहर। राजा भोज सभा समीक्ष सासनमहिमा कर ॥ १९ ॥ तास पट्टि श्रीवीरसूरि जिणि नेमि जिणंद । करीयै प्रतिष्ठा नागपुरै गुरु देवानंद ॥ विक्रमसूरि महामुणिंद नरसिंह हुवा गुरु ।' नारिसिंह जिण यक्ष कीयौ श्रावक जिम अणुचरु ॥ २० ॥ तासु पट्टि समुद्रसूरि जिणि नागेन्द्रह पुर। पारश्वचैत्यउदालि लीओ जे हुय दिगम्बर ॥ पद्मावतिनै वलहतेन अद्धरिध कीयौ । करि प्रभावना जैन तणी गुरि जग जस लीयौ ॥ २१ ॥ मानदेवगुरु सूरिमंत्र वीसर्यो किणिहि परि। For Private And Personal Use Only
SR No.521575
Book TitleJain_Satyaprakash 1942 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1942
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
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