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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनि मालकृत बृहद्गच्छीय गुर्वावली संग्राहक-श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा, सं. ' राजस्थानी ', बीकानेर जैन गच्छों में बड़गच्छ प्रसिद्ध गच्छ है। इस बड़गच्छकी स्थापनाका समय, अंचलके अतिरिक्त तीनों गच्छोंकी पट्टावलियोंमें, वि. सं. ९९४ पाया जाता है; तब अंचल गच्छकी मोटी पट्टावलीमें वि. सं. ७२३ बतलाया है, पर वह ठीक नहीं प्रतीत होता। क्योंकि बड़गच्छकी गुर्वावली जिसे हम इस लेखमें प्रकाशित कर रहे हैं तथा इससे पूर्वरचित अन्य इसी गच्छकी संस्कृत गुर्वावलीमें बड़गच्छ की स्थापनाका समय वि. सं. ९९५ लिखा है। इस गच्छकी भाषा-गुर्वावली जो इस लेखके साथ प्रकाशित हो रही है वह बीकानेरके राजकीय संग्रहके गुटके नं. १४ में है । यह कृति भाषामें होनेके कारण इसका सार देना अनावश्यक होनेसे मूल भाषा-पट्टावली ही यहां देता हूं। ॥ पट्टाबली ॥ दोहरा-श्री आदीश्वर प्रमुख जिन निमीयै त्रिकाल ॥ .. जे पालैं जिणआण मुनि तिन्हुहिं बंदीयै माल ॥१॥ युगप्रधान पंचम अरै दोइ सहस नै चारि ॥ आदि सुधर्मास्वामीतै अरु दुपसह मंझारि ॥ २ ॥ युगप्रधान सम आदीयै होसैं पंचम कालि॥ षोडसहस इग्यार लाख ते संभारे मुनि माल ॥ ३ ॥ गुरु पंचावन कोडि लख पण धन कोडि सहस्स ॥ संख्या चउपन कोडिस्यउं मनि संभरौ अवस्स ॥४॥ चउमालीसा कोडिस्यउ लाख वलि तेतीस ॥ . . . , सहस छवीसा चारिसइ एगाणवई मुनीस ॥५॥ . एं संख्या मझिम गणहिं, होसई इणि कलिकालि ॥ समइ समइ जु अणंत गुण हाणि कही संभालि ॥ ६॥ रोहणगिरि सागर जिसौ ए जिणसासण जाणि ॥ उत्तिम मध्यम होई बहु माल रतनजह खाणि ॥ ७ ॥ आगमि आचारज कह्या चारि करंड समान ॥ सहहियै निरता हियई जिणवर आण प्रमाण ॥ ८॥ श्री जिनवर अनुक्रमै इन्द्रभूति गणधार ॥ सुगुरु सुधास्वामि मुणि जंबूस्वामी कुमार ॥९॥ सासन रखवालो जिसौ जंबू तिसौ न कोइ ॥ .... तीनि रतन अनुपम दीया चोरहनै पणि जोइ ॥ १०॥ For Private And Personal Use Only
SR No.521575
Book TitleJain_Satyaprakash 1942 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1942
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
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