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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[ वर्ष ७
जिनसमुद्रसूरि से प्रतिष्ठा करवाई। कुंथुनाथ और शांतिनाथको मूलनायकके रूपसे स्थापित किये । चौवीश तीर्थकरोंकी अनेक प्रतिमा बनवाई |
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६ सं. बीदइने सपरिवार शत्रुंजय, गिरनार, आबूकी यात्रा की, लड्डु, घी, खांडकी लाहण की । जिनहंससूरिजी के वर्ष ग्रन्थिकाका महोत्सव कर अल्ली (तत्कालीन मुद्रिका) की प्रत्येक घर में लाहण की। पंचमी तपका उद्यापन किया। पांच स्वर्णमुद्रिकाएं आदि उद्यापन में रखे । कल्पसूत्रजीका कई बार व्याख्यान करवाया । ५ चार लाख नवकार का जाप किया। चारसो जोडी अल्ली की लाहण की। यात्रा से लौटकर प्रत्येय घरमें १० सेर घी की लाहण की। अष्टापद मंदिरके दोनों मंजिलों के जगतिके द्वारकी चौकी बनवाई। पउडसाण (पगथिये) जाली १४ सुहणा (स्वप्न) और देहरे पर कांगुरे बनवाये । पार्श्वनाथजीके दो बिम्ब बनवाये । दोनों हाथियोंपर सं. खेता. सं. सरस्वती की मूर्ति बनवाई। सं. १५८१ के मार्गशीर्ष कृष्ण १० रविवारको रावल लूणकर्णजीके कथनसे श्री पार्श्व मंदिर और अष्टापद मंदिर वे बीचमें सेरी (गली ) निकाली । कुतना वड बंधाये, वारणा, उडाण करवाये । वेईबंध छज्जा वलि, कोहर एक बनवाया । १००० गाय जोडी,
अन्न गुड बहुत वार ब्राह्मणादिको दान किये। जेसलमेर की दक्षिण और घाघरे बंधाये। मंदिरोंकी सेरी और घाघरा दोनों रावल जयतसिंहकी आज्ञासे बनवाये थे । गवाक्ष बनवाया । दश अवतार सह लक्ष्मीनारायणजीकी मूर्ति गवाक्ष में बनवाई |
७ सं. सहसमल्लने शत्रुंजयकी यात्रा की, जीर्णगढ, रायपुर, वीरमगाम, पाटण, पारकर में खांड एवं अल्लीकी लाहण हुए घर आये । जैसलमेर में इस गोत्र वालोंने बहुतसी प्रभुमूर्तिएं बनवाके प्रतिष्ठित की, ग्रन्थ लिखवाये, जिनमें से कई लेखोंकी नकल नाहरजी के जैन लेख संग्रह भा ३ में प्रकाशित हो चुके हैं । हमारे संग्रहमें इसी वंशके लिखवाए हुए कल्पसूत्र की २९ श्लोकोंकी विस्तृत प्रशस्ति है ।
कीर्तिरत्नसूरिजीने संखबाल
गोत्रवालोंके निम्नोक्त ७ शिक्षाओंके देनेका लेख हमारे संग्रहके पत्र एवं कीर्त्तिरत्नसूरिछंदादि में पाया जाता है, वे ये हैं: - १ मालवा, थहा, सिंध और संखवाली नगरीमें न जाना; २ गच्छभेदमें सहयोग न देना; ३ गच्छ के भक्त बने रहना; ४ दीक्षा न लेना, ५ लोद्रवा, सातलमेर, बीकानेर, कोरंटे और जैसलमेर में मंदिर : बनवाना, ६ जहाँ निवास करो नगर के चौराहे से या राज्यप्रासादकी ओर वसना; ७ औषधिनिमत्त हलदी न लेना । इस प्रकार संखवाल गोत्रके विषयमें यथाज्ञान विचार किया गया है। वंशावलि आदि विशेष विवरण लेख विस्तारभयसे नहीं दिया गया है ।
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१ जेसलमेर, लेखांक २१४५ के आधारसे लिखित कई नाम रूढ होनेसे अस्पष्ट रह
गये हैं ।
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