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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir દીપોત્સવી અંક ] તક્ષશિલાકા વિવંસ [२०३] यद्यपि इनका कोई अवशेष अभीतक नहीं मिला, तथापि तक्षशिलाके ५० या ६० मील दक्षिणकी ओर सिंहपुरनामक एक और प्राचीन नगर था ( वर्तमान कटासराजके पास मूर्तिग्राम)। चीनी यात्री ह्यूनचांगने लिखा है-" यहां ( सिंहपुरमें ) श्वेत पटधारी पाखण्डियोंके आदि उपदेष्टाने बोधिको प्राप्त किया, और प्रथम देशना दी। इस घटनाका सूचक एक शिलालेख भी यहां रक्खा हुआ है। पास हि एक देवमन्दिर है। जो लोग यहां आते हैं वे घोर तपस्या करते हैं........।" सम्भव है कि ऋषभदेवस्वामी यहां पहुंचे हों औ यहींसे बाहुबलीको समाचार ।मला हो। और यहीं पर दर्शनार्थ आकर वे निराश हुए हों। जैन अवशेषः-जैन-साहित्यमें तक्षशिलाका जो वर्णन आता है उसके आधार पर इस नगरीको जैनधर्मका एक बड़ा भारी केन्द्र माननेमें कोई आपत्ति न होनी चाहिए। इससे यह भी सिद्ध होता है कि यहां अनेक जैन मन्दिर तथा स्तूप होंगे, जिनमेंसे कई निःसंदेह अति सुन्दर और अति विशाल भी होंगे। पर अब वहां कोई ऐसा अवशेष नहीं मिला, जिसको निश्चित रूपसे जैन कहा जा सके । केवल दो स्तूप ही ऐसे हैं जिनके विषयमें सर जॉन मार्शलने लिखा है:-" अब मेरा विश्वास है कि सिरकपके एफ़ (F) और जी (G) ब्लोकके छोटे मन्दिर इन्हों (जैन ) मन्दिरोंमेंसे हैं । पहले मैं इन मन्दिरोंको बौद्ध-मन्दिर समझता था। परन्तु अब एक तो इनकी रचना मथुरासे निकले हुए आयागपट्टों पर उत्कीर्ण जैन स्तूपोंसे मिलती है, और दूसरे इनमें और तक्षशिलासे अब तक निकले हुए बौद्ध-मन्दिरोंमें काफ़ी भिन्नता है । इन कारणोंसे अब मैं इनको बोद्धकी अपेक्षा जैन स्तूप ही मानता हूं। यद्यपि इस निश्चयके लिए अभी तक अकाट्य प्रमाण नहीं मिला ।' तक्षशिला का विध्वंश:-तक्षशिलाका विध्वंस विक्रमकी पांचवी शताब्दिके लगभग माना जाता है । सर जॉन मॉर्शलके मतानुसार यहांकी विमल अट्टालिकाओंको मिट्टीमें मिलानेवाले तुरुष्क ही थे। इनका यह अनुमान चन्द्रप्रभसूरिकृत प्रभावकचरित के मानदेव-प्रबन्धके आधार पर है जो इस प्रकार है:___ " सप्तशति नाम देशमें कोरंटक नाम नागर था-जहां भगवान् महावीरका मन्दिर था । वहां उपाध्याय देवचन्द्र रहते थे । विहार करते हुए वे एक बार बनारस आ पहुंचे । वहां इनको आचार्य-पद मिला और ये वृद्धदेवसूरिके नामसे प्रसिद्ध हुए। अन्तमें प्रद्योतनसूरिको अपने पट्टपर बिठा कर श्रीशत्रुजयतीर्थ पर अनशन करके स्वर्ग सिधारे। (४-१६) ५ बील बुधिस्ट रिकॉडर्ज ऑफ वेस्टर्न वर्ल्ड, लंडन १८८४, भाग १, पृ० १४३-४५ । ६. सर जॉन मार्शल: आर्केओलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, ऐन्युअल रिपोर्ट १९१४-१५,पृ० २. ७. प्रकाशित बम्बई १९०९, पृ० १९१-९६ । २६ For Private And Personal Use Only
SR No.521573
Book TitleJain_Satyaprakash 1941 09 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1941
Total Pages263
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size130 MB
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