SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११] શાહ હુકમચંદજી સુરાણ [४२५] लक्ष्मीचंदजी आए । और निश्चय किया गया कि ऐसे लुटेरोंकी जहां जहां गढियें है उन्हें नष्ट कर दी जाय । और राज्यकी ओरसे थाने स्थापित किये जाय । - इसके बाद बीकानेरकी तरफसे तत्कालीन महाराजसाहबने शाहजी हुकुमचंदजीको इन डाकुओका ठीक प्रबन्ध करने के लिए नियुक्त किया। आपने चंद दिनोंमें ही गांव लोढासरके मालिक बीदावतकी गढीको गिरा दिया एवं उसे गिरफ्तार करा लेया । तदुपरान्त आपने अनेक डाकुओं की गढीये नष्ट कर उन्हें गिरफतार कर लिये । आपने लोढासर, मोगणां, चारीसेला आदि अनेक गढीयें गिरा कर वहाँ राज्य के थाने स्थापित किये। इसी वर्ष महाजनके ठाकुर वैरिशाल ने अपने यहां करीब २०० लुटेरे डाकुओंको रख छोडा था । महाराज रत्नसिंहजीने उसे प्रथम डाकुओको निकालने के लिए कहा पर उसने ध्यान नहीं दिया, तो तत्कालीन बीकानेरपतिने वि. स. १८८६ कार्तिक यदि १ (ई. स. १९२९ ता. १३ अक्टोबर) को सुराथाजी हुकुमचंदजीको सेनापति बनाकर, उनकी अध्यक्ष में ठाकुर वैरिशाल पर सेना भेजी। शाहजी हुकुमचंदजीके आने के समाचार सुनकर वह ( वैरिशाल) भागकर अंग्रेजोंके इलाके गांठटीवी में जा रहा। ठाकुरके पुत्र तीन दिन तक तो शाहजीके डंकेकी चोट सहते रहे, अंतमें इस फिजुल के खूनखराबोसे कोई फायदा न देख किलेको शाहजी हुकुमचंदजीके कर कमलोंमें सुपुर्द कर उनकी सेवामें हाजिर हो गये। थोडे दिन बाद ठाकुर वैरिशाल भी आपकी सेवामें उपस्थित हो गया। इन्हीं दिनों में आप गांव केली ससैन्य भेजे गये। जिस समय महाराजा रत्नसिंहजीने पूगलकी ओर प्रस्थान किया तब आप भी महाराजाजी के साथ थे । - महाराजा रत्नसिंहके राज्यकालमें सरदारों डाकुओंने बहुत उपद्रव मचा रखा था। वे प्रजाको बहुत कष्ट देते थे। मानसिंह, हमीरसिंह, विसनजी, पृथ्वीसिंह, प्रतापसिंह आदिने राज्य में खूब धूम मचा रखी थी। इन्होंने बीकानेर राज्य करणपुरा, लाखणवास, अजीतपुरा, सीधमुख आदि करीब सो से उपर गांवोंको बरबाद कर डाला था। इस पर बीकानेर से शाहजी हुकुमचंदजी इनका दमन करने के लिए भेजे गये । आपने जाकर सबको भलीभांति सजा देकर उपद्रवको शांत किया। वि. सं. १८९५ वैशाख सुदी १२ ( ई. सं. १८३८ ता. ६ मई) को कर्नल एल्बिसने बीकानेर में एक खरीता भेजा उसमें लिखा कि सारवाडकी सरहद के लुटेरोंके प्रबन्धके लिए सेना भेजो। इस पर हुकुमचंदजी सुराणा . x श्रद्धेय रायबहादुर ओझाजीके हालही में प्रकाशित 'बीकानेर का इतिहास' द्वितीय खड से कुछ सहायता ली है। For Private And Personal Use Only
SR No.521571
Book TitleJain_Satyaprakash 1941 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1941
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy