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એક અલભ્ય મહત્ત્વપૂર્ણ પ્રતિ
[ ४२३ ] बीकानेर भी लाये थे, पर न मालूम वह प्रति कहाँ गायब हो गई । बहुत प्रयत्न करने पर भी अधावधि उसको उपलब्धि न हो सकी ।
इस वर्ष बोकानेरके वृहद् ज्ञानभंडारके फुटकर पत्रोंका अवलोकन करते समय सौभाग्यवश उस प्रतिकी सूचि उपलब्ध हुई जिसे सं. १९२४ के ज्येष्ठ शुक्ला प्रथम १३ को, अजीमगंजमें उक्त प्रतिको वहाँकी वडी पोसालमें देखकर, लिखी थी । सूचि लिखे अनुसार इसकी पत्रसंख्या १४४ या १४५ थी और सं. १४९० के मार्गशीर्ष शुक्ला ७ को प्रति लिखी गई थी। श्री अमरचन्दनी बोथ के कथनानुसार इस प्रतिका नाम 'जिनभद्रसूरिस्वाध्याय - पुस्तिका ' है ।
उपलब्ध सूचि के अनुसार यह प्रति करीब १०० कृतियोंके संग्रहरूप थी। प्रारंभ में दशवेकालिक, पाक्षिकसूत्र, साधुप्रतिक्रमण, स्थविरावली, उपदेशमाला, बृहत्संग्रहणी, कर्मविपाक आदि प्रकरण थे । मध्य में जिनेश्वरसूरि, जिनचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि, जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि आदिकी कृतियें और अंत में जिनेश्वरसूरिरचित 'चन्द्रप्रभचरित्र' (गाथा ४० ) थे ।
इस प्रतिमें कई अन्यत्र अलभ्य ऐसी कृतियें भी थी, उनके नाम यहां देता हूँ ताकि इसके महत्वका पता चल जाय
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१ जिनपतिस्ररिपंचाशिका
२ जिनेश्वरस्ररिसप्ततिका
३ जिनप्रबोधसूरि चतुःसप्ततिका
४ जिनकुशलसूरि बहत्तरी
५ मिनलब्धिसूरि बहत्तरी
६ जिनलब्धिसूरि स्तूपनमस्कार
७ जिनलब्धिसूरि नागपुर स्तूपनमस्कार,,
८ अभयदेवसूरिकृत ऋषभस्तष
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नेमिस्तव
स्तंभन पार्श्वस्तव
गाथा ५५ पत्रांक १२०
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पत्रांक ९४२
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इनमें नं. १ से ७ तककी कृतियें ऐतिहासिक दृष्टिसे बडे ही महस्वकी हैं । इनके प्राप्त होनेसे खतरगच्छके इतिहासमें एक नया प्रकाश मिलेगा । अतः सर्व सज्जनोंसे सादर अनुरोध है कि जिन्हें उक्त प्रति या उपरोक्त कृतियें ( इनमें से कोई भी ) प्राप्त हो तो मुझे सूचित करनेकी कृपा करें।
ठि. नाहटोंकी गवाड, बीकानेर ।
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