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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
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भाष्यकारने उससे आगे कदम बढाये हैं और थोडासा परिवर्तन करके सारा चतुर्विशतिस्तव पाठ ही उठा लिया है।
(१) आवश्यक सूत्र (जिनागम ) में चतुर्विशतिस्तष पाठ इस प्रकार हैलोगस्स उज्जोयगरे धम्मतित्थयरे जिणे अरिहंते कित्तइस्स चउवीसंपि केवली ॥ सूत्र० १॥ उसभ० सूत्र २ ॥ सुविहिं सूत्र ३॥ कुंथु० सूत्र ४ ॥ एवं मए अभिथुआ विहुयरयमला पहीण जरमरणा । चउवीसपि जिणवरा तित्थयरा में पसीयन्तु ॥ सूत्र ५ ॥ सामायिक भाष्य पृ० १५में चतुर्विशतिपाठ निम्न प्रकार हैथोंसाम्यहं जिणवरे, तित्थयरे केवली अणंतजिणे, गरपवरलोयमहिए, विहुयरयमले महप्पणे ॥१॥ लोगस्सुजोययरे, धम्मतित्थंकरे जिणे बन्दे । अरहते कित्तिस्से, चउधीसं च केवलीणो ॥ २ ॥ उसह० ३ ॥ सुविहिंच०४ ॥ कुंथुच० ५ ॥ एवं मए०६॥
सामायिक-भाष्यमें पहली गाथा नई की है, २-३-४-५ गाथाएं आवश्यकसूजीसे कुछ फेरफार करके ली है, और छठी गाथा आवश्यकसूत्रसे ज्यों की त्यों संगृहीत की है। मगर गाथा १ और ६ में उल्लिखित "बियरयमले" विशेषण दो बार आता है जो प्रथम गाथाकी कृत्रिमताका गवाह बन जाता है ॥
(२) जैन षडावश्यक श्रीसिद्धसेन दिवाकरजी के बाद 'नमोर्हत्सिद्धा. चार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः ॥ १ ॥ पाठ पढा जाता है। दिगम्बर सामायिक भाष्य में भी उस पाठ का अनुकरण मिलता है की .. (पृष्ठ-१६)
अर्हसिद्धाचार्योपाध्यायेभ्यस्तथा च साधुम्यः | सर्वजगद्द्येभ्यो नमोस्तु सर्वत्र सर्वेभ्यः ॥ १ ॥
(३) कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रमूरिजीके अविनीत शिष्य बालचन्द्रजीने चैत्यवेन्दनकी चूलिकास्तुति बनाई है। यहां उसकी तीसरी श्रुतस्तुतिको उठाकर सामायिक भाष्यमें श्रुतभक्ति अधिकारमें नोड दी है। वह यह है:-- (पत्र ---४२)
अहवक्त्रप्रसूतं गणधररचितं द्वादशांग विशालं, चित्रं बहवर्थयुक्तं मुनिगणवृषभैर्धारितं बुद्धिमतिः ॥ मोक्षाग्रहारभूतं प्रतचरणफलं शेयभावप्रदीपं, भक्त्या नित्यं प्रपद्ये श्रुतमहमखिलं सर्वलोकैकसारं ॥ १ ॥ पत्र ५२ ॥
उपर लिखे प्रमाणोंसे सिद्ध है कि उपलब्ध दिगम्बर सामायिकभाष्य श्री आवश्यक सूत्रके भाष्य के सहारेसे विक्रमकी तेरहवीं शताब्दिके बादमें बना है।
यह ग्रन्थ सरासर श्वेताम्बरीय अनुकरण रूप है ।
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