________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
म १०] છેદપીંડ તથા સામાયિક-ભાષ્ય
[१५] निर्माता गृहस्थ हैं उस निर्ग्रन्थ पद के पक्षपाती समाजका साहित्य कितना दरिद्र है-अल्प है यह बात पाठकोंको पुनः बताने की आवश्यकता नहीं है। इस हालतमें उन गृहस्थीओंके वचन ही जिनवाणी माने जाय उसमें कोइ आश्चर्यकी बात नहीं है । अस्तु, कुछ भी हो वे विद्वान् भी श्वेताम्बरीय शास्त्रोंके आधार पर या कल्पनाओंके तरंग पर एक ग्रन्थ बनालेंगे जो भविव्यके दिगम्बर समाजमें वीतरागप्रणित शास्त्र याने जिनेन्द्रवचन माना जायगा।
[२] सामायिक-भाष्य
[एक दिगम्बरीय विधिग्रन्थ ] जैसे श्रीमद वढेरक आचार्यने आवश्यकनियुक्तिके नकलरूप षडावश्यका. धिकार बनाया वैसे ही काष्ठासंघी दिगम्बर विद्वान् आ० प्रभाचन्द्रने विशेष. आवश्यकभाष्यको नकल करके सामायिकभाष्य बनाया है। ___ यह सामायिकभाष्य प्राकृत-संस्कृतमें बना है और सटीक है। यह ग्रंथ हस्तलिखित ४८ पत्रोंका है । यद्यपि इसका नाम सामायिकभाष्य है, मगर इसमें सुबह और श्यामको मुनिक्रियाका संग्रह है। परमार्थसे इसको षडावश्यक (प्रतिक्रमण)नाम दिया जाय तो भी ठीक है।
इसी ग्रंथके अंतिम ४ पत्रों में लिखित टीका-पाठसे पता चलता है किः सामायिक-भाष्य नंदीतटका ग्रन्थ है।
श्रीनन्दीतटसंघमंडनविधौ ज्ञानांबुधावाश्रयम् । पंचाचारविचारणकचतुरं रत्नत्रयाराधकम् । (पत्र-४६) ये नित्यं व्रतधर्ममंत्रनिरता ध्यानाग्निहोत्राकुलाः । षट्कर्माभिरतास्तपोधनधनाः साधुक्रियासाधवः ।। शीलप्रावरणागुणप्रहरणाश्चंद्रार्कतेजोधिकाः ।
मोक्षधारकपाटपाटणभटाः प्रीणन्तु मां साधवः ।। (पत्र-४७) इसके अन्तमें लेखककी प्रशस्ति निम्नप्रकार है--(पत्र-४८)
॥ इति सामायिकभाग्य समाप्त ॥ संवत् १६९९ वर्षे कार्तिकमासे शुक्लपक्षे ११ रवौ दिने श्रीअकलेश्वरग्रामे श्रीनेमिनाथचैत्यालये श्रीकाष्ठासंघे नंदीतटगच्छे विद्यागणे भ० श्रीरामसेनान्वये तदनुक्रमेण भ० श्रीषिशातकीर्ति तस्पट्टे भ० श्रीविश्वसेन तत्पढे भ० श्रीलक्ष्मीसेन विजयराज्ये, भ० श्री श्रीभूषण तस्य शिष्य उपाध्याय श्रीशीलभूषण तशिष्य उपाध्याय श्री हेमकीर्तिविजयराज्ये, संघवो विमलदास लक्ष्मण ( संघवी लक्ष्मण तत्सुत संघवो श्रीविमलदास ) लक्षीतं । शुभं भवतु । कल्याणमस्तु । श्रीरस्तु । जयोस्तु ॥ श्री ॥ पत्र ४९ ___ मैं पहले मूलाचार के प्रकरण में लिख चुका हु कि श्री गणधर भगवान रचित आवश्यकके चतुर्विशतिस्तवनसूत्र १ व ६ को जोड कर श्रीमद वट्टेरकजीने मूलाचार के ७ वे परिच्छेदको ४२वीं गाथा बनाई है । सामायिक
For Private And Personal Use Only