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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छेदपीड तथा सामायिक-भाष्य लेखक-मुनिराज श्री दर्शनविजयजी [१] छेदपीड दिगम्बरीय शास्त्रोमें छेदग्रंथकी कमीना थी, वह कार्य भी आ० इन्द्रनन्दीने सुलझा लिया। उन्होंने श्वेताम्बर आगमोंके सहारे छेदपींड शास्त्र बनाया । यह ग्रंथ शेठ माणिकचंद्र शास्त्रमाला-बम्बई की तरफसे प्रकाशित "प्रायश्चित्त-संग्रह" में छप गया है । दिगम्बरीय मुनिओंके लिये सबसे प्राचीन यही प्रायश्चित्त-ग्रंथ है । यह सारा ग्रंथ आ० श्री भद्रबाहुस्वामी कृत "कल्पव्यवहार" के आधार पर बनाया गया है। यह बात ग्रंथनिर्माताने भी स्पष्ट रूपसे जाहीर कर दी है । ग्रंथकर्ताकी यह उदारता है । उन्होंने साफ लिखा है कि-- एवं दसविध पायच्छित्तं भणियं तु कप्पववहारे ॥ जीदम्मि पुरिसभेदं गाउं दायव्वमिदि भणियं ॥ __ छेडपिंड गा० २८८ ॥ साफ बात है कि इस शास्त्रकी रचना श्री वृहत्कल्पसूत्र और व्यवहार सूत्र के आधारसे की गई है । इस प्रकार दिगम्बरीय छेदग्रन्थ भी श्वेताम्बर शास्त्रसे बनाये गये हैं। दिगम्बर विद्वानोंको दिगम्बर शास्त्रोंका मूल श्वेताम्बर शास्त्र है यह बात खटकती है अतः वे अब दिगम्बर समाज के लिये नये प्रायश्चित्त ग्रन्थ बनाने के लिए कोशिश कर रहे हैं । और दिगम्बर जैन शास्त्रार्थ संघ अंबालाने ता० १८, २, १९३८ के अधिवेशनमें प्रस्तुत विषयके बारेमें एक प्रस्ताव भी कर लिया है, जो इस प्रकार है-- प्रस्ताव-५ " भा० दि० जैन संघका यह अधिवेशन प्रस्ताव करता है कि समाजमें फैली हुई दण्डव्यवस्थाकी वर्तमान अव्यवस्थाको दूर करने के लिये निम्नलिखित विद्वानोंकी एक समिति कायम की जाय जो कि शास्त्रीय प्रमाणोंके आधार पर इस अव्यवस्थाको दूर करनेके लिये समाज के लिये उपयोगी दंडव्यवस्थाका रूप निश्चित करे"। प्रस्ताव-७ वेमें सात विद्वानों के नाम वगैरह आते हैं। इन प्रस्तावोंसे स्पष्ट है कि दिगम्बरीय साहित्य वास्तवमें पराश्रित है और पंडितोंकी कल्पनाओंके पर निर्भर है। जिस समाजमें शाखोंके For Private And Personal Use Only
SR No.521570
Book TitleJain_Satyaprakash 1941 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1941
Total Pages42
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size20 MB
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