SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir દીવાન શાહ ફતેહગંદજી સુરાણ [२२८] n am mas - am-A EETINENTr ६०० खुरसानहर १५ कोल विस्तार छे, तिहाथी १२०० तारातघील नगर छते ७२ कोस बिस्तार छ नगरनी बाजार ४८ कोसने विस्तार छे तिहां रोमी पातिसार राज्य करे छे, ले छ माले बारणे आये ते पातिसाहरै २४ टाख कटक छ, संहने ३ लाख लंका ट्रडी छ लोहनो कोट सहिर दोलो छ। तिहाथी ५०० कोस बकर देश के तिहाहिर रंगाई, तिहां सरचंद राज्य करे ते नगर ४० कोसन विस्तारे छ, तिहाँ समुद्रता काही छे, जैनधर्म छे अद्भुत प्रामाद पोसाल अनेक छ।' दीवान शाह फतेहचंदजी सुराणा लेखक-श्रीयुत हजारीमलजी वांठिया, कलकत्ता. शाह फतेष्टचंदजी सुराणा स्वनामधन्य शाह माणिकचंदजी सुराणा के ज्येष्ठ पुत्र और दीवाज अभरवंदजी के पौत्र थे। आप भी अपने पिताकी तरह रणकुशल सेनापति और सुज्ञ राजनीतिज्ञ थे। आपको वीरता की प्रहासा राजाओं ने ही नहीं परन्तु उच्च अयज पदाधिकारीयों ने की है। शाह माणिकचंदजी सुराणान सरदार शहर में पार्श्वनाथ भगवानका जिनालय बनवाया था, जो अब भी आपकी पहा पलाझाको समस्त थली प्रदेशमें फैला रहा है। पार्श्वनाथ प्रभुकी प्रतिमा पर खुदा हुघा प्रतिमालेख, जो मुझे श्री कान्तिसागरजी महाराज से हर माईको भवरलालजी नाहट केमारा प्राप्त हुआ है, इस प्रकार है श्री राठोडवंशान्वये नरेन्द्र श्री सरतसिंहजी लपटू महाराजाधिराज महंत श्री रतनसिंहजी विजय राज्य। संवत १८९७ मा फाल्गुन सुदि ५ तिथौ शुक्र श्री बृहत्खरतर गणाधीश्वर भट्टारक श्रो जिनह परिः इत्पट्टालंकार जं । यु । प्र । श्री जिनसौभाग्यमृरिविजयिशव्ये श्री सिरदारनगर मुराणा शाह माणकचंदजी प्रमुख सकल श्रीमंधन मानंद श्री पानाथप्रासाद कारितः प्रतिष्ठापितश्च सदैव कल्याण वृद्धयर्थ ।। राजनैतिक और सनिक क्षेत्र वि. सं. १९०५ में शाह फतेहचंरजी को श्रीजीनाहिब बहादुर ने महरबानी फरमाकर फौजमुसाहिवके पद पर नियुक्त किया। पि. सं. १९१४ ई. सं. १८५५) में अंग्रेजों के विरुद्ध बलबा हुआ । कानपुर और देहलीकी फौज के बिगड़ने एर हामी और हिसार की फौज भी अंग्रेजों से बिगड खडी हुई । महाराजा सरदारसिंह ने ऐसे समय पर ससैन्य शाह श्री फतेहाचंदजी आदि प्रधानों को रियासती तरफसे सरसाव होसी हिसारकी और भेजकर अंग्रेजी सरकारी तुब सहायता की। शाह फतेहचंदजी के साथ शाह लक्ष्मीचंदजो दस लालचंदजी व उदयचंदजी सुराणा थी थे । शाहजीने वहाँ पहुंचकर किले छीनने अनेक कार्यों में अंग्रेजी सरकारको भरपेट महायता पहनाई। यजी सरकार शाह For Private And Personal Use Only
SR No.521567
Book TitleJain_Satyaprakash 1941 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1941
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy