________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ २२० ]
શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[
मूलनायकजी बीजामतिके श्रीपूज्यजीके उपदेशसे मंदिर (बडा) बनवाकर विराजमान किये गए। परन्तु तपागच्छके मंदिरमें प्रतिष्ठा तो उसीके आचार्य श्री विजयदेवसूरिजी के आज्ञानुवर्ती पं. लब्धिचन्द्र गणिने की । मालपुरा तपागच्छका केन्द्र रहा है, वहां पर तपागच्छके साधु बहुधा चौमासा किया करते थे । [ देखा 'श्री जैन सत्य प्रकाश' क्रमांक ५१ पृ. १२६-२७ में प्रकाशित 'बांधणी पट्टक' ]
टिप्पणी-यदि पं. लब्धिचन्द्र गणिका कहाँ विशेष परिचयमिलता हो तो सुज्ञ पाठक वह मुझे सूचित करें ।
(५) पांचवां लेख उस धातुमूर्तिका श्रीसुमतिनाथजीका गुजराती सं. १६७२ ज्येष्ठ सुदि ५ शुक्रवारका है जो कि अब विजयगच्छके श्री आदिनाथजीके मंदिर में विराजमान है । यद्यपि उसमें प्रकारान्तरसे कोई नाम अन्य प्रतिष्ठापकका सूचित नहीं किया है तथापि इनकी प्रतिष्ठा श्रीविजयदेवसूरिजीने न की होगी, बल्कि श्रीचन्द्रप्रभ जिनप्रासादमें जिस दिन उपाध्याय श्री भानुचन्द्रजीने प्रतिष्ठा की उसी दिन उन्हींके साथमें इनकी भी प्रतिष्ठा उन्होंने की होगी । उनका इसमें नाम न होना कोई बडी बात नहीं है, क्योंकी श्रीविजयदेवसूरिजीका हिन्दी सं. १६७२का चौमासा विसलनगर में था, वहांसे वे पाटन आये थे, और सं. १६७३का चौमासा उन्होंने पाटनमें ही किया था ( देखो 'श्रीविजय तिलकसूरिरास कडी १०६८ - १९७२ तथा 'विजयदेवमाहात्म्य' सर्ग ९ श्लोक ३४ से ६५ तकर्म उल्लेख है कि उक्त सूरिजी ने पाटनमें सं. १६७३ माघ सुदि में श्रीकनकविजयजीको उपाध्याय पद दिया था ) । पाटनवालों की सं. १६७२ माघ सुदि १३ को उन्होंने प्रतिष्ठा भी की थी ( देखो - आचार्य श्रीबुद्धिसागरसूरिजी का 'जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह ' भा० १ लेख २७२ २७४ | यदी मालपुरेवालोंने हिन्दी सं. १६७३ ज्येष्ठ सुदि ५ को पाटनमें जाकर उनसे प्रतिष्ठा करानेके अन्य कोई प्रमाण उपलब्ध हों तो पाठक कृपया मुझे सूचित करें ।
ऐतिहासिक अनुसंधान द्वारा मुझे जो कुछ ज्ञात हुआ सो ही मैंने इस लेखमें लिखा है ।
ठि. कटरा खुशालराय, देलही
For Private And Personal Use Only