________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४] તત્વાર્થભાષ્ય અલંક
[१५ जो ' अर्हत्प्रवचनहृदयादिषु गुणोपदेशात् । उक्तं हि अर्हत्प्रवचने' वाक्य हैं उनका अर्थ सामान्य से जिनागम, अर्हदागम अथवा जिनप्रवचन नहीं हो सकता; वे किसी खास ग्रंथ की सूचना को लिये हुए हैं । तथा मैं समझता हूं कि उक्त पदों का लक्ष्य उमास्वाति का सभाष्य तत्त्वार्थसूत्र है।
___ २ अर्हत्प्रवचन और तत्त्वार्थाधिगम पं. जुगलकिशोरजी का वक्तव्य
(क) इति श्रीमदहप्रवचने तत्त्वार्थाधिगमे उमास्वातिवाचकोपज्ञसूत्रभाष्ये भाष्यानुसारिण्यां टीकायां सिद्धसेनगणिविरचितायां अनगारागारिधर्मप्ररूपकः सप्तमोऽध्यायःसिद्धसेनगणिटीका के इस संधिवाक्य का अर्थ इस प्रकार है-'तत्त्वार्थाधिगम नाम के अर्हत्प्रवचन में, उमास्वातिवाचकोपज्ञ सूत्रभाष्य में, और भाष्यानुसारिणी टीका में, जो कि सिद्धसेन गणि-विरचित है, अनगार (मुनि) और अगारि (गृहस्थ) धर्म का प्ररूपक सातवाँ अध्याय समाप्त हुआ' । इस तरह उक्त वाक्य में मूल तत्त्वार्थाधिगम सूत्र, भाष्य और टीका इन तीनों ग्रंथों के मुख्य विशेषणों की अलग अलग व्यवस्था है। मूलसूत्र और भाष्य का एक ही ग्रंथकर्ता माने जाने की हालत में मूलसूत्र (तत्त्वार्थाधिगम) के 'अर्हत्पवचन' विशेषण को वहाँ कथंचित् भाष्य का विशेषण भी कहा जा सकता है, सर्वथा नहीं । भाष्य का नाम न तो 'तत्त्वार्थाधिगम है' और न 'अर्हत्प्रवचन'; ' तत्त्वार्थाधिगम' मूलसूत्र का नाम है और 'अर्हत्पवचन' यहाँ 'अर्हत्पवचनसंग्रह के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है, जो कि मूल तत्वार्थसूत्र का ही नाम है, जैसा रॉयल एशियाटिक सोसायटी कलकत्ता के तत्त्वार्थाधिगमसूत्र के संधिवाक्य से प्रकट है-" इति तत्त्वार्थाधिगमाख्येऽर्ह प्रवचनसंग्रहे देवगतिप्रदर्शनो नाम चतुर्थोऽध्यायः समाप्तः।"
(ख) तत्त्वार्थाधिगमाख्यं बह्वथ संग्रहं लघुग्रंथं ।
वक्ष्यामि शिष्यहितमिमर्हद्वचनैकदेशस्य ॥ ---इस कारिका में भी ' तत्त्वार्थाधिगम ' यह नाम मूल सूत्रग्रंथ (बह्वर्थ लघुग्रंथ) का बतलाया है और साथ ही उसे 'अर्हद्वचनैकदेश का संग्रह ' बतलाकर प्रकारान्तर से उसका दूसरा नाय ‘अर्ह प्रवचनसंग्रह ' भी सूचित किया है-भाष्य के लिये इन दोनों नामों का प्रयोग नहीं किया है । चुनांचे खुद प्रो. साहब के मान्य विद्वान् सिद्धसेन गणि () भी इस कारिका की टीका में ऐसा हो सूचित करते हैं। वे 'तत्त्वार्थाधिगम' को इस सूत्रग्रन्थ की अन्वर्थ (मौण्याख्या) संज्ञा बतलाते हैं और साफ़ तौरसे यहाँ तक लिखते हैं कि जिस लघु ग्रंथ के कश्चन की प्रतिज्ञा का इसमें उल्लेख है, वह मात्र दो सौ श्लोक-जितना है। यह प्रमाण
For Private And Personal Use Only