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[ २४ ]
શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
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आपके मेरे उपर के पत्र में स्पष्ट किया है ) उसे 'किर्लोस्कर' में प्रकाशित करें जिससे उस कथा के पढनेसे पाठकोंमें जो भ्रम फैला हो वह दूर होजाय और ur efore कथाको सत्य कथा मानकर कोई जैनधर्म या जैन साधुकी निन्दा न कर सके। मुझे आशा है-पत्र सम्पादक के पवित्र सम्बन्धसे आप इतना अवश्य करेंगे ।
श्री द. पां. खांबेटेकी तरकले मेरे पत्रका अभी तक कोई उत्तर नहीं मिलने से दूसरा पत्र इसके साथ लिख भेजा है वह उन्हें भेजकर अनुगृहीत करें। और उनका पूरा पता (address) मुझे सूचित करें जिससे भविष्य में, आपको तकलीफ न देकर, मैं उन्हें सीधा पत्र लिख सकुं । विशेष क्या ? मेरे योग्य साहित्यसेवा लिखें ।
पत्रका उत्तर शीघ्र दें ।
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श्री. द. पां. खांबेटेको लिखा हुआ दूसरा पत्र
- आपका
रतिलाल दीपचंद देसाई
व्यवस्थापक.
' ऊंचे देऊळ' में आपने जो कुछ लिखा है उसका अत्यन्त आवश्यक है । अतः उस पत्रका शीघ्र उत्तर देकर विशेष क्या ? मेरे योग्य साहित्य सेवा लिखें ।
श्रीमान् द. पां. खांबेटे महाशय,
'किर्लोस्कर' के गत जुलाई मास के अंक में प्रकाशित आपकी 'ऊंचे देऊळ' शीर्षक कथाके सम्बन्ध में मैंने ता. १९ १०-४० के रोज आपको एक पत्र लिखा है, वह पत्र आपको 'किर्लोस्कर के सम्पादकजीकी तरफसे मिल गया होगा । आज पर्यन्त आपकी तरफसे उस पत्रका उत्तर या स्वीकार न मिलने से यह दूसरा पत्र लिखना पडा है ।
-
अमदावाद, ७
७-११-४०
For Private And Personal Use Only
-आपका
रतिलाल दीपचंद देसाई
व्यवस्थापक.
इसके पश्चात् अभी तक 'किर्लोस्कर' के सम्पादक या श्री खांबेटे महाशय की ओर से हमें कोई पत्र नहीं मिला ।
परिमार्जन होना अनुगृहीत करें ।
કિલોસ્કર'ના તંત્રીના જે પત્રનુ અમે અહીં ગૂજરાતી તેમજ હિન્દી ભાષાન્તર આપ્યુ છે તે પત્ર મૂળ મરાઠી ભાષામાં નીચે મુજબ