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कतिपय संशोधन
लेखक-श्रीयुत पन्नालालजी दुगड "श्री जैन सत्य प्रकाश" क्रमांक ६२--'पंजाब में जैनधर्म शीर्षक लेख में
संशोधन' लेख में निम्न संशोधन करना । पृ० ८८ पं० २६ में २४ अगस्त १५८५ के आगे जो '४०' छपा है वह नहीं होना चाहिये । ... पृ० ८९ पं० १ 'श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथजी के भूमिगृह में' के बजाय 'उक्त मंदिर के भूमिगृह के भंडार में' समझना ।
पृ० ८९ पं०६-७ में 'सं. १६४७ हिन्दीका प्रारंभ काल' समझना ।
पृ० ८९ पं० २० में 'साथ में के किसी साधु के नाम के 'बजाय' भानुचन्द्रजीका नाम लिखने की भूल की है' समझना ।
पृ० ८९ पं० १० में पृ० १६५ के बजाय १६६ चाहिए ।
पृ० ८९ पं० २४ में 'फिर' के आगे इस प्रकार बढाना-बिहार करके पाटन में आये और सं १६६९ का चौमासा पाटन में कर रहे थे।
पृ०९० १० १२ में 'राम कल्याण' के स्थानमें 'राय कल्याण' समझना। पृ० ९० पं० २० के आगे छटे संशोधन में नीचे लिखा हुआ लेख और
बढ़ाना:
" इसके सिवाय अकबरनामा में तलाश किया गया तो जहांगीर की जिस पुत्रो के मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण ग्रह अष्टोत्तरी स्नान हुई थी उसका जन्म १५ दे सन ३४ इलाही [ २७ दिसंबर २५८९ ई० वि० हिं. १६४६ पोष वदी १४ ] को हुआ था (देखो अकबगममा भा० ३ फारसी पृ० ५७२ अंग्रेजी अनुवादित पृ० ८६५-६६ ) तो उस समय तक मानसिंहजी के अकबर के सम्पर्क में आनेका कहीं नाम निशान भी नहीं मिलता है अतः देसाईजी का कथन सर्वथा प्रामाणिक है।
युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि वक्तव्य पृ. २३ मे सं० १६४७ [ आश्विन पदी २] की जन्मी हुई कन्या को मूल नक्षत्रमें जन्मी हुई मान लेना सर्वथा असत्य है, क्यों कि उस दिन तो प्रायः अश्विनी नक्षत्र या उससे पिछला या अगला नक्षत्र होता है । इसके साथमें यह भी बतला देना आवश्यक है कि श्री हीरविजयसरिरास पृ० १८३ में कन्या होनेकी घटना काश्मीर प्रवास के पश्चात् लिखी है सो तो भूल है ही वल्कि चरित के दूसरे प्रकाश में अजीजकोका (आजमखान) की जाम को जीतने के बाद इस घटना का
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