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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[वर्ष
श्री मेघविजयजी के शिष्य श्रीइंद्रविजयजी ने आपको अजमेर में जाकर दी थी ( कड़ी ११३६-३७ )। इससे सिद्ध होता है कि आप सं० १६६९ के जाड़ों से संवत १६७२ के जाड़ों तक फिर सम्राट् जहांगीर के दरबार में रहे । इसके पश्चात् विहार करके मालपुर, मारवाड होकर हिं० सं० १६७३ का चौमासा जालोर में रहे थे जिसका विस्तृत वर्णन मालपुरे के लेख में दिया है । यह बात पाठकों के ध्यान में रहनी चाहिए कि सम्राट् जहांगीर उस समय में तीन वर्ष तक अजमेर में रहा था ।
टिप्पणी- उपाध्याय श्रीभानुचन्द्र चरित में २३ वर्ष के अन्त में विहार करके जानेके बाद पांच चौमासे किए जाने का उल्लेख ठीक नहीं मालूम होता क्यों कि एक तो २३ वर्ष का मीजान ठीक नहीं बैठता, दूसरे उपर्युक्त केवल दो चौमासों का तो विस्तृत वर्णन है, शेष का कुछ भी हाल नहीं है ।
(५) ऊपर में दी हुइ एक टिप्पणी से यह बात साफ हो गई है कि रामकल्याण के उपद्रव का दमन उपाध्याय श्री शान्तिचन्द्रजी ने ही कराया था अतः साथ आपका नाम लिखना भूल है ।
में
(६) 'सूरीश्वर और सम्राट' का अनुकरण करके यह लिखा जाना ठीक नहीं है कि उपाध्याय श्री भानुचन्द्रजी ने शान्तिस्नात्रमहोत्सव करवाया उसमें खरतरगच्छ के मानसिंहजी ( श्रीजिनसिंहसूरि ) भी सहयोगी थे, क्योंकि श्रीयुत मो. द. देसाईजी की खोज के अनुसार खरतर गच्छ के साहित्य में इसका कहीं भी उल्लेख नहीं है । प्रत्युत श्रीहीरविजयसूरिरास पृ० १८३ कड़ी ४२ में मानसिंह का नाम लिखने या पढ़ने की भूल है, वास्तव में यह 'थानसिंह' नाम होना चाहिए ।
(७) सं० १६५३ में श्री हीरविजयसूरिजी के अग्निसंस्कार के स्थान में १० बीघे जमीन दिए जानेका लिखना ठीक नहीं है क्योंकि उनके निर्वाण का संवत सब लेखकों ने हिन्दीगणना से ही लिखा है (विजयप्रशस्ति-काव्य सर्ग १३-१४ तथा शत्रुंजय तीर्थ पर उनकी तत्कालीन पादुका का लेख ) अतः यह घटना गुजराती सं० १६५९ और हिन्दी १६५२ की है ।
सूचना दें।
जिन जिन विद्वानों के पास श्री हीरविजयसूरिजी की तकालीन प्रतियां हों वे मुझे उपर्युक्त भूलों के विषय में तलाश करके शीघ्र सूचना देने की कृपा करे । एवं उपाध्याय श्री भानुचन्द्र चरित की तत्कालीन प्रति की विद्वानों के बीच में सत्य परीक्षा अवश्य होनी चाहिए, अतः इस का भी उत्तर लिखें ।
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