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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समाधिकुलकम् । कर्ता-आचार्य महाराज श्री विजयपद्मसूरिजी (गतांकथी पूर्ण) रयणी वट्टइ तिमिरं, जहेव तण्हा तहेव भोगाणं ॥ रागाइदोसविदं, णिसाणिहा भोगतण्हाओ ॥१६॥ जेसिं हियए होजा, एसा ते दुकृपावकम्मेसुं ॥ नियमाउ पयट्टते, अकज्जपरिवड्ढिणी तण्हा ॥ १७ ॥ सद्दाइयभोगेहिं, समिउं कंखंति वालिसा तण्हं ॥ जलगयससहरबिंब, गहिउँ कंखाइ सरिसं तं ॥१८॥ अहमा मोहा तण्हं, किच्चा उण वल्लहं परिभमंते ।। वियडदुरंतभवम्मि, जम्मजरामरणदक्खसए ॥१९॥ दोसनियाणं णच्चा, तण्हं णिस्सारिऊण तणुगेहा ॥ मणदारत्थगणं जे, कुणंति सम्भाविया भव्वा ॥ २० ॥ ते संणासियविग्घा, वियलियपावा लहंति मुत्तिमुहं ॥ किच्च प्पाणं सुद्धं, एवं मुहजीवणं सिवयं ॥ २१ ॥ कोहा निरयावासो, माणा कुलवलसुयाइपरिहाणी ॥ मायाए इस्थित्तं, तिरियत्तं व पुरिसत्तं ॥ २२ ॥ लोहा धम्मविणासो, विसयकसाया बलिट्ठतेणनिहा ॥ संजमकरवालेणं, हणिज खिप्पं जया जीओ ॥ २३ ॥ ता णिब्भयसब्भावो, संपाउणए सकजसंपत्ती ॥ पज्जतसमाहीए, मरणं होज पसंतिदयं ॥ २४ ॥ सम्मईसणनाणं, वरचरणं दुल्लहं वियाणित्ता ॥ तिहं हु साहणेणं, सहलो निभवो न यण्णेहिं ॥ २५ ॥ एयस्स भावरंगा, पढणायण्णणविसुद्धजोगेहिं । संसाहियसीयविही, हवंति संतारगा भव्या ॥ २६ ॥ जिणसासणम्मि णिच्चं, सिरिगोयमजंबुथूलिभदाणी । संघगिहे मुहणंदी, रिद्धिपवुडी कुगंतु सया ॥ २७ ॥ एयं समाहिकुलगं, गुरुवरसिरिगेमिसरिसीसेणं ॥ पंउमेणायरिएगं, कप्पडवाणिज्जवरणयरे ॥२८ ॥ रसणिहिणवससिवरिसे, सिरिणेमिजिणंदजम्गजच्चदिणे ॥ विहियं सपरहियटं, कुणउ सयलसंघकल्लाणं ॥ २९ ॥ (समाप्त) For Private And Personal Use Only
SR No.521563
Book TitleJain Satyaprakash 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1940
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
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