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मंत्रीश्वर वर्द्धमानशाह ले० श्रीयुत हजारीमलजी बांठिया, बीकानेर
रानपूताने की तरह गुजरात-काठीयावाड़ प्रान्त का इतिहास भी ओसवाल मररत्नों के आत्मत्याग, बलिदान और अन्य वीरोचित कार्यों से सुशोभित है। गुजरात-काठीयावाड़ के प्राचीन सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, सैनिक, व्यापारिक और आर्थिक आदि अनेक क्षेत्रों में ओसवाल वीरों का ही प्रथम हाथ रहा है । और वहां के पुनीत इतिहास में ओसवाल वीरों की गरिमा गौरवान्वित है।
आज उन्हीं ओसवाल नररत्नों में से एक वर्द्धमानशाह के जीवनपट पर कुछ झांकी की जा रही है । गुजरात-काठीयावाड़ के धार्मिक और राजनैतिक क्षेत्रों के ओसवाल मुत्सदियों में आपका आसन ऊंचा है । आपकी तथा आपके लघु भ्राता शाह पद्मसिंह की यशःपताका आज भी शत्रुञ्जय और जामनगर में फहराती है और चिरकाल तक फैलाती रहेगी।
बर्द्धमानशाह ओसवाल ज्ञाति के लालण गोत्र के पुरुष थे । आप अमर. सिंह के ज्येष्ठ पुत्र, बच्छ. के पौत्र और पर्वत के प्रपौत्र थे । आपका जन्म अमरसिंह की धर्मपत्नी लिंगदेवी की रत्नगर्भ कुक्षि से हुआ था ।
बर्द्धमानशाह का मूल निवासस्थान कच्छ प्रांतका अलसाणा नामक ग्राम था। संयोगवश अलसाणे के ठाकुर की कन्या का विधाह-जामनगर के जाम साहब से हुआ। बिदा के वक्त जामसाहब ने ठाकुर से किन्या के दहेज में घर्द्धमानशाह और उनके संबन्धी रायसीशाह को जामनगर में बसने के लिए मांगा । इस पर बर्द्धमानशाह ठाकुरआज्ञा से १० हजार ओसवाल मनुष्यों को साथ लेकर जामनगर आ बसे ।।
वर्द्धमानशाह बड़े धनाढय कुशल व्यापारी थे । आपका अनेक देशों के साथ व्यापार होता था । आपने अपने बाहुबल से लाखों रूपयों की संपत्ति अर्जन की। अगर आपको तत्कालीन कुबेरपति' की पदवी दी जाय तो भी कोई अत्युक्ति नहीं होगी।
बर्द्धमानशाह का राजा और प्रजा में बहुत सम्मान था । आप तथा आपके भाई पद्मसिंह तत्कालीन जामनगर के जामसाहब के प्रधान मंत्री थे । जामसाहब आपका बहुत मान करते थे, प्रत्येक महत्वपूर्ण कार्य में आपकी राय लेते थे । आप असंख्य द्रव्य के मालिक थे।
जामनगर में दोनों कुबेरपति भाई बर्द्धमानशाह और पद्मसिंह रहकर अनेक देशों के साथ व्यापार करने लगे और वहांकी जनता में बड़े लोकप्रिय हो गये । और दोनों भाईयोंने वि. सं. १६७६ में शत्रुनय और नामनगर
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