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મંત્રીશ્વર વ માનશાહુ
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में बड़े बड़े विशाल जैन मंदिर बनवाए और शत्रुञ्जय तीर्थ आदि तीर्थों की यात्राएं की ।
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इन वर्द्धमानशाह का एक लेख शत्रुञ्जय पहाड़ पर विमलवसई टॉक पर हाथी पोल के नजदीकषाले मन्दिर की उत्तर दिशावाली दिवाल पर लगा हुआ है ।
यह लेख २९ पद का पथ में है और इसके नीचे थोडासा अंश गद्य में है । इस लेख के पहले पांच पथों में नवीनपुर ( जामनगर ) के राजा जनत और शत्रुञ्जय का उल्लेख है । और पद्य ६ से लेकर २३ पथ में आचार्य कल्याणसागरसूरि आदि आचायों के नाम हैं । २४ पथ से बर्द्धमानशाह और पद्मसिंह के प्रतिष्ठा करनेवाले कुटुम्ब के वर्णन का भाग इस प्रकार है । " ओसवाल जाति में लालण गौत्रान्तर्गत हरपाल नामक एक बड़ा शेठ था । उसके हरीआ नामक पुत्र हुआ । हरीआ के सिंह सिंह के उदेसी, उदेसी के पर्वत, और पर्वत के बच्छ नामक पुत्र हुआ । बच्छ की भार्या "बाच्छलदे की कुक्षि से अमर नामक पुत्र हुआ । अमर की लिंगदेवी नामक श्री से वर्द्धमान, चांपसी और पद्मसिंह नामक तीन पुत्र हुए। इनमें वर्धमान और पद्मसिंह बहुत प्रसिद्ध थे। ये दोनों भाई जामसाहब के मंत्री थे । जनता में आपका बहुत सत्कार था । वर्द्धमानशाह की स्त्री वन्नादेवी थी, जिसके बीर और विजयपाल नामक दो पुत्र थे । पद्मसिंह की बी का नाम सुजाणदे था, जिसके श्रीपाल कुँवरपाल और रणमल्ल नामक तीन पुत्र हुए ।
इन तीनो भाइयोंने संवत् १६७५ ( शाके १५४१) वैखाख सुदि ३ बुधबार को शान्तिनाथ आदि तीर्थङ्करों की २०४ प्रतिमाएं स्थापित कीं और उनकी प्रतिष्ठा करवाई । "
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अपने निवासस्थान नवानगर ( जामनगर ) में भी उन्होंने बहुत विपुल द्रव्य खर्च करके कैलाश पर्वत के समान ऊंचा भव्य प्रासाद निर्माण करवाया और उसके आसपास ७२ देवकुलिका और ८ चतुर्मख मन्दिर बनवाये । शाह पद्मसिंह ने शत्रुञ्जय तीर्थ पर भी ऊँचे तोरण और शिखरोंवाला एक बड़ा मन्दिर बनवाया और उसमें श्रेयांस आदि तीर्थङ्करों की प्रतिमाऐं स्थापित कीं ।
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" इसी प्रकार संवत् १६७६ के फाल्गुन मास की शुक्ला द्वितीया को शाह पद्मसिंहने नवानगर से बड़ा संघ निकाला और अंचलगच्छ के तत्कालीन आचार्य कल्याणसागरजी के साथ शत्रुञ्जय की यात्रा की और अपने बनाए हुए मन्दिर में उक्त तीर्थङ्करों की प्रतिमाऐं खूब ठाठ बाठके साथ प्रतिष्ठित करवाई ।
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१ पूरा लेख पुरातत्वाचार्य मुनि जिनविजयजी संपादित प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग २ के लेखाङ्क २१ में प्रकाशित है ।
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