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एक नवीन ऐतिहासिक काव्य
[वादि-देवसरि-चरित्र ] लेखक : श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटा, संपादक “ राजस्थानी" जैन साहित्य का अन्वेषण अभोतक बहुत ही कम हुआ है, जैन साहित्य बहुत विशाल है और खोजशोधप्रेमी व्यक्तियों का नितान्त अभाव है, इसी कारण पचीसों वर्षों में नहीं के समान कार्य होने पाया है। जैन समाज बहुत धनो समाज है, प्रतिपर्व लाखों रुपये धूमधाम में खर्च हो जाते हैं. पर ठोस कार्य बहुत कम होता है। जैन श्वेताम्बर कॉम्काम्स ने कई वर्ष अच्छा कार्य किया था. कई भंडारों को सूचियें बनाकर उनके आधार से जैनग्रंथावलो ग्रन्थ प्रगट किया था, भंडारों को सूचिये बनाने का कार्य अभितक चालु रहता तो न मालुम कितना अधिक साहित्य आज तक प्रकाश में आता। पर हमारे समाज का तो न जाने कैसा बुरा भविष्य है कि कोई ठोस कार्य प्रारंभ हो भी जाता है तो वह पनपने हो नहीं पाता कि बंद हो जाता है।
इधर कई वर्ष पूर्व बीकानेर के हस्तलिखित जैन ज्ञानभंडारों की सूची बनाने की और लक्ष्य गया और कई वर्षों तक परिश्रम कर करीब २५ हजार प्रतियों की सूचि तैयार को। इससे सैंकड़ों नवीन ग्रन्थों का पता चला है। उन नवीन ग्रन्थों में विशिष्ट ग्रन्थों का समय समय पर परिचय कराने का प्रयास चालु है। बीकानेर के सैंकड़ों रास चौपाई आदि लोकभाषा के ग्रन्थों का निर्देश तो हमने जैन गुर्जर कवि ओ भा. ३ में दिया है और मेरे सह सम्पादन में राजस्थान रिसर्च सोसायटो-कलकत्ता द्वारा " राजस्थानी" + नामक एक त्रैमासिक पत्र निकलता है इसके प्रत्येक अंक में भो एक एक विशिष्ट ग्रन्थ का परिचय एवं जैन प्रतिमा लेखों को प्रकाशित करता हूँ। पर वह त्रैमासिक पत्र है, बहुत समय लग जायगा इसी दृष्टि से 'जैन सत्य प्रकाश' में भी उस विभाग को चालु किया है। गत अंक में उ० श्रीवल्लभ के तीन नवोन ग्रन्थों का परिचय दिया था। इस लेख में एक ऐतिहासिक काव्य का परिचय दिया जा रहा है। आशा है यह प्रयत्न साहित्यप्रेमियों को उपयोगी होगा। ___अन्वेषण के सुफल से पैतिहासिक साहित्य भी अच्छे परिमाण में मिला है, जिसमेंसे फुटकर लोकभाषा के बहुत से ऐतिहासिक काव्यों को हमने अपने ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह ग्रन्थ में प्रकाशित किया है। खरतर गच्छ गुर्वावलि जो कि अपने ढंग का एक ही अपूर्व ग्रन्थ है साक्षर जिन विजयजो के सम्पादकित्व में सिंघी ग्रन्थमाला से छपना शुरु हो गया • पता, न्यू राजस्थान प्रेस, ठि. चासाधोंबा कलकत्ता मू. ४) पुस्तकालयों से ३)
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