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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२८४] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [१५५ बाद में पू० बूटेरायजी म.ने पू० मूलचन्द्रजी गणी को गुजरात में रक्खा । वृद्धिचन्द्रजी म० को काठीआवाड की, पू० नीतिविजयी म०को सुरत्त विभाग की और, पू० आत्मारामजी म० को पंजाब की आज्ञा दी, इस प्रकार उत्तरदायित्वयुक्त धर्मप्रचार चालु रक्खा । पञ्जाब के उद्धार का भगीरथकार्य पू० आत्मारामजी को सुपुर्द था। यह मानना ठीक होगा कि धर्मवीर बूटेरायजी म० का पञ्जाब के प्रवे० मू० जैनधर्म के उत्थान में वही स्थान है जो स्थान राष्ट्रीय महासभा के उत्थान में एलन आक्टेवियन (युम) और दादाभाई नवरोजजी का है। अन्तत : आपका नाम पञ्जाब के जैन इतिहास की अमीट क्रान्तिरेखा समान है। (देखो-मुहपत्तिचर्चा, श्री आत्मानंद शताब्दी स्मारक ग्रंथ भा० ३, ता. २२ मार्च सन १९३६ के “जैन" में प्रकाशित-धर्मवीर खुटेरायजी) पू० आत्मारामजी महाराजजी (आ. विजयानंदमूरिजी म.) (वि० सं १९३५ से ५३) पू. आत्मारामजी म. अपर नाम आ० विजयानन्दसूरिजी म. ये पू० श्री बुटेरायजी म. के शिष्य हैं, और क्रमशः स्था० संप्रदाय व सवेगी पक्ष में दीक्षित होने के कारण दो नाम से प्रख्यात है। आपने श्री गुरुदेव के आशीर्वाद से और गच्छाधिराज मूलचन्द्रजी गणि प्रमुख गुरु बन्धुओं के सर्वतोमुखी सहयोग से पञ्जाब में विशेष धर्मप्रचार का भगोथर कार्य उठाया। एक सिरे से दूसरे सिरे तक सद्धर्म की आवाज पहूंचा दी और साथसाथ में तत्वनिर्णयप्रासाद, जैनतत्वादर्श वगैरह उपयुक्त हिन्दी जैन साहित्य का भी निर्माण किया, जिसका स्थान हिन्दी जैम साहित्य में अग्रगण्य है, और प्रचारकार्य को संगीन बनादिया। आपके शासनप्रेम, अदम्य उत्साह और कार्यदक्षता के फल स्वरूप आपके अनुगामी हजारों की संख्या बढ गये और अमृतशहर, जोरा, हुशियारपुर, और अंबाला वगैरह स्थान में मन्दिर स्थापित हुए। आ० विजयकमलसूरीजी म०-आ०विजयकमलरवर ये पू० आ०श्री विजयानंदमूरिजी के पट्टधर हैं। आपने पञ्जाब में खूब विहार किया है। आपने व उ० श्री वोरविजयजी, आ० श्री विजयवल्लसूरिजो, आ० श्री विजयलब्धिसूरिजी वगैरहने पञ्जाब में अनेकवार शास्त्रार्थकर जय प्राप्त किया है, जिनमें गुजरानवाला और मुलतान के शास्त्रार्थ अतिप्रसिद्ध है। श्री आत्मरामजी म. ने ब्रह्मद्वीपमें याने मेरठ जिले के बिमौली और खींवाई में नये जैन बनाये । चैत्यालय स्थापित करवाया। आपने वीरचंदजो गांधी को चीकागो (अमरिका) की सर्वधर्म परिषद में जैनधर्म के पचार निमित्त, पञ्जाब से भेजा था। पञ्जाब के जैन इतिहास में आपका नाम स्वर्णाक्षर से उत्कीर्ण रहेगा। आपके बाद आपके शिष्यों ने पञ्जाब में जैनधर्म का उपदेश जारी रखा। For Private And Personal Use Only
SR No.521556
Book TitleJain Satyaprakash 1940 04 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1940
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
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