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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्वानों से आवश्यक प्रश्न (३) श्रीयुत पन्नालालजी दुगड जौहरी अपने प्रश्न लिखने से पहिले पाठकों को यह कह देना आवश्यक है कि मैं लगभय दो वर्ष से जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरिजी आदि व तपागच्छ और खरतर गच्छ के इतिहास की गवेषणा करने में लगा हुआ हुँ। किन्तु यहां पर साहित्य का अभाव है एवं नाही कोई ऐतिहासिक विद्वान् ही मेरा सहायक है फिर भी दीर्घ खोज और अविश्वान्त परिश्रम के कारण अनेकों नये नये ऐतिहासिक सत्य जान सका हुं जैसे श्री हीरविजयजी आदि के विषय में:(१) श्री हीरविजयसूरिजी को सम्राट अकबरने सादर बुलाया था तब उनकी विद्यमानता-कालमें ही १०६ दिन की हिंसा निषेध हो गई थी। उन पूरे दिनों की सूची उपलब्ध करना । (२) तपागच्छ साहित्य में संवत् किस स्थान में गुजराती गणना से उल्लेख किए हैं और किस स्थान में हिन्दी गणना से उनका निर्णय करना ।। सम्राट अकबर और जहांगीर के दरबार आदि में तपागच्छ के साधुओं द्वारा कराए हुए कार्यों का क्रमशः संवतानुक्रम स्थिर एवं उक्त सम्राटों के दिए हुए फरमानों की हिन्दी तिथियां व अंग्रेजी तारीखें प्राप्त करना व सब फरमानों की फारसी भाषा अक्षरशः नागरी लिपि में लिखना एवं फरमानों के अनुवादों की जांच करके शुद्ध अनुवाद तैयार कराना । श्री हीरविजयसूरिजी और श्री विजयसेनसूरिजी के चौमासों की क्रमशः गुजराती सं. १६३७ से १६५१ तक की और सं. १६४१ से १६७० तक की संवतानुक्रम से टीप तैयार करना, एवं श्री विजयदेव सूरिजी आदि के विषय की भी कुछ आवश्यक घटनाओं के संवत् उपलब्ध करना । इत्यादि इत्यादि शोधखोजें करने से कितने ही ऐतिहासिक सत्य प्रगट हो गए हैं, क्योंकि अभी तक कोई विद्वान् तो तपागच्छ साहित्य में सब स्थानों में गुजराती गणना से ही संवत् मानते हैं तो कोई केवल हिन्दी गणना ही लेते हैं, किन्तु वास्तव में एक ही लेखक द्वारा दोनों पद्धतियों के अनुसरण करने का ख्याल शायद ही किसीके ध्यान में होगा सो भी ऐसा ग्रन्थ एकाध नहीं है किन्तु बहुत से हैं । यही कारण है कि परस्पर कहीं कहीं संवतों का भेद तत्कालीन ग्रन्थों में पाया जाता है। फरमानों की हिन्दी तिथिएं उपलब्ध कर लेने से भी इतिहास पर बहुत बड़ा प्रकाश पड़ा है। मैं चाहता हूं कि मेरी सत्य शोधखोजों से जनता को भी लाभ पहुंचे, अतः इस सम्बन्ध में मैंने “जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरि" नामक पुस्तक लिखी है जिसमें मुख्यतः श्री हीरविजयजी का तो विस्तृत चरित दिया ही है साथ में उपर में सूचित श्री विजयसेनसूरिजी, श्री विजयदेवसूरिजी आदि व उपाध्याय श्री शान्तिचंद्रजी, श्री भानुचंद्रजी और श्री सिद्धिचंद्रजी आदि के भी आवश्यक वृत्तांत विस्तार से दिए हैं और अनेकों जैन अजैन तत्कालीन प्रमाण भी संग्रह For Private And Personal Use Only
SR No.521555
Book TitleJain Satyaprakash 1940 03 SrNo 56
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1940
Total Pages46
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size24 MB
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