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________________ Jain Education International २३१-२ | ચમને નિતારે [3] किया था, वैसे ही सम्राट् सम्प्रति से भी यह आशा की जाती है, कि वे विदेश में जैनधर्म प्रचार के साधन सुलभ कर दें और होने वाली रुकावटों का निवारण करें। सारे संघ को तो यह स्वीकृत था ही सम्पतिने भी खड़े होकर इस आज्ञा को शिरोधार्य करने की घोषणा कर दी | इस सभा सम्मेलन के पश्चात् जैन साधुओं को विदेश में धर्मप्रचार के लिये तैय्यार किया और उन्हें विदेश में भेजकर जैनधर्म का प्रचार कराया । उसका जो परिणाम हुआ, वह इसी प्रकरण में उपर दिया जा चुका है। ४ महाराजा खारवेल भगवान महावीर के पश्चात् होनेवाले मुख्य राजाओं में कलिङ्गाधिपति महामेघवाहन चक्रवर्ती महाराजा सारवेल के वर्णन की उपेक्षा नहीं की जा सकती। मौर्य साम्राज्य के अतिंम महाराजा ई. स. १८४ पूर्व में अपने सेनापति एवं जैनधर्म विरोधी पुष्यमित्र द्वारा धोखे से मारे गये. मौर्य साम्रा ज्य का अंत हो गया और उस समय पुष्यमित्र ही स्वयं उस विशाल राज्यका सञ्चालन करने लगा। पुष्यमित्र धर्मान्ध होने के कारण जैन मुनियों तथा जैन धर्मानुयायियों को अत्यन्त कष्ट पहुंचाता था । ऐसे अभिमानी राजा के गर्व को खर्च करने का श्रेय महाराजा खारवेल को प्राप्त हुआ । महाराजा खालका उच्च इतिहास हस्तोगुफा के शिलालेख से ही प्रकाश में आया है, अन्यथा महाराजा खारवेल के संबंध मे कुल बातें विस्तार से जानने को शायद ही प्राप्त होतीं। इस लिये यहां पर हस्ती गुफा शिलालेख के संक्षिप्त परिचय के साथ खारवेल के जीवन पर प्रकाश डालेंगे। महाराजा खारवेल के संबंध में प्राप्त शिलालेख कलिंग देश ( वर्तमान उडीसा ) के खण्डगिरि और उदयगिरि की पहाड़ी हस्तीगुफा से मिला है। यह शिलाले १५ फुट लम्बा और ५ फुट से अधिक चौड़ा है, जिस पर १७ पतियां, प्रत्येक पंक्ति में ९० से १०० तक अक्षर विद्यमान हैं, एवं प्रत्येक अक्षर का आकार ३३ इंच से लेकर इंच तक पाया जाता है। ऐतिहासिकों का मत है कि उसकी भाषा पाली से मिलतो है, यह लेख दो हज़ार वर्ष से अधिक प्राचीन है, इस लेख का लेखक भी जैन ही अनुमान किया जाता है, क्यों कि इसका प्रारम्भ नमोअरहतानं ' से हुआ है, लेख से यह भी प्रतीत होता है कि बाद में उसका संशोधन भी होता रहा है, क्यों की उस पर कइयों के हाथ से खुदाई का काम प्रतीत होता है। C इस शिलालेख को सर्व प्रथम ईस्वीसन १६२० में पादरी स्टलिने देखा था, परंतु स्टर्लिङ्ग महोदय उसे अच्छी तरह पद नहीं सके। उन्होंने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.521537
Book TitleJain Satyaprakash 1938 08 SrNo 37 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages226
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size4 MB
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