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________________ Jain Education International [૩૨] શ્રી ને અન્ય પ્રકાશ-વિયાંક [१४ यों से कोई खेल खेलता तो ऐसा ही जिसमें स्वयं राजा वनकर साथियों को अपनी प्रजा बनाकर आज्ञा करना, न्याय करना और दण्ड देना । चन्द्रगुप्त लगभग आठ वर्ष का हुआ तब चाणक्य की दृष्टि इस बालक पर पड़ी और अपने पूर्व वचन के अनुसार चन्द्रगुप्त को असली राज्य का लोभ दे कर साथ किया, और उसे राजाओं के योग्य उचित विद्याभ्यास कराया और नन्द के समूल नाश की तैय्यारी प्रारम्भ कर दी । प्रारम्भ में तो चन्द्रगुप्त ने चाणक्य की नीति और अपने वल मे कुछ भूमि अधिकार में कर छोटासा राज्य बना लिया, और फिर अपनी शक्ति को संगठित करना प्रारम्भ किया | भारत से वापस चले जाने पर विश्वविजयी सिकन्दर का वैचिलोन में ई. सन् ३२३ पूर्व देहान्त होगया। पश्चिमोत्तर प्रान्त तथा पंजाब में बतानी राज्य कायम रखने के लिये जिन को सिकन्दर छोड़ गया था, उन पर चन्द्रगुप्त ने अपनी प्रवल और संगठित शक्ति से आक्रमण किया और सब प्रान्त अपने आधीन कर लिये, एवं अन्त में चाणक्य की नीति से राजा, 'नन्द' पर विजय करने में चन्द्रगुप्त को सफलता प्राप्त हुई । इस प्रकार नन्द के मगधदेश पर अधिकार करके मगधपति सम्राट चन्द्रगुप्त हो गया। परिशिष्ट पर्व में लिखा है, कि चन्द्रगुप्त के विजय के अनन्तर नन्द की युवती कन्या की दृष्टि पड़ी और यह चन्द्रगुप्त पर आसक्त हो गई, और नन्द ने भी प्रसन्नतापूर्वक चन्द्रगुप्त के पास चले जाने की अनुमति दो प्राचीन भारतवर्ष (गु० ) में डॉ. त्रिभुवनदास ल. शाहने भी इस घटना पर लिखा है कि जो इतिहास चन्द्रगुप्त को नन्द का पुत्र लिखते हैं, उनकी यह बड़ी भूल है, चन्द्रगुप्त नन्दका पुत्र नहीं बल्के दामाद था । । इस प्रकार सम्राट चंद्रगुप्त की वीरता से मौर्य सत्ता की स्थापना हुई । लाला लाजपतरायजी के शब्दोंमें" भारत के राजनैतिक रंगमथ पर एक ऐसा प्रतिष्ठित नाम आता है, जो संसार के सम्राटों की प्रथम श्रेणि में लिखने योग्य है, जिसने अपनी वीरता, योग्यता और व्यवस्था से समस्त उत्तरी भारत को विजय कर के एक विशाल केन्द्रीय राज्य के आधीन किया। सेल्युकस द्वारा भेजे गये राजदूत मेगास्थनीज ने चंद्रगुप्त के राज्य पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला है, उसके वर्णन से यह बात स्पष्ट झलकती है कि वीरपूडामणि चंद्रगुप्त ने न्याय, शान्ति और व्यवस्था पूर्वक शासन करते हुए प्रजा को सर्व प्रकारेण सुखी एवं सन्तुष्टा किया। अपने साम्राज्य को अलग अलग प्रान्तों में विभाजित किया। वहां पर नगर शासक मंडलम्युनिस्पलिटियां और जनपद - डिस्ट्रिक्ट बोर्ड भी कायम किया। सेना की सर्वोत्तम व्यवस्था थी, दूसरे देशों से सम्बन्ध के लिये सड़कों का निर्माण * भारत वर्ष का इतिहास -ला. लाजपतराय. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.521537
Book TitleJain Satyaprakash 1938 08 SrNo 37 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages226
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size4 MB
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