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________________ १-२] ચમફતે સિતારે इस अवमर से लाभ उठाने के लिये सिकन्दर ने ईस्वी सन ३२७ पूर्व भारत पर आक्रमण किया। छोटे बड़े अनेक राजाओं से लड़ता झगड़ता पंजाव तक ही पहुंचा। छोटे छोटे राजाओंने भी डरकर मुकाबला किया था उसे मार्गके इन कई अनुभवों ने हताश कर दिया, आगे न मालूम कितनों से युद्ध करना होगा, इस घबड़ाहट के कारण वह पंजाब से ही वापस चला गया । भारतीय राजाओं की आंखे खोलने और शिक्षा के लिये इतनी ठोकर पर्याप्त थी, उन्हें अपनी छिन्नभिन्न अवस्था खटकने लगी, और अन्त में एक वीर मैदान में आया, और उसे अपना शक्तिशाली राष्ट्र निर्माण कर ने में सफलता प्राप्त हुई, वह वीर था सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य । इतिहास लेखकोंने चन्द्रगुप्त के विषय में एकस्वर होकर यह लिखा है, कि भारतीय इतिहास में यही सर्व प्रथम सम्राट है, जिसने व्यवस्थित और शक्तिशाली राष्ट्र कायम ही नहीं किया, बल्कि उसका धीरता, वीरता, न्याय और नोतिसे प्रजाको रञ्जित करते हुए व्यवस्थापूर्वक संचालन किया है । यह सर्व प्रथम अमर सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जैनधर्मावलम्बी ही था, इस पर प्रकाश डालने से पूर्व उसकी संक्षिप्त जीवनी का दिग्दर्शन कर लें। चन्द्रगुप्त, राजा नन्द के मयूरपालकों के सरदार की 'मुरा' नामक लड़की का पुत्र था । इस 'मुरा' शब्द से 'मौर्य' प्रसिद्ध हुआ, यह ऐति. हासिकों का मन्तव्य है । उसी समय की बात है अर्थात् ३४७ ई. सन पूर्व राजा नन्द से अपमानित होने के कारण नीतिनिपुण 'चाणक्य' उसके समूल नाश करनेकी प्रतिज्ञा कर जब पाटलीपुत्र छोड़कर जा रहा था, तो मार्ग में मयूरपालकों के सरदार की गर्भवती लड़की 'मुर'के चन्द्रपान के दोहले को इस शर्त पर पूर्ण किया, कि उससे होनेवाला बालक मुझे दे दिया जाय । ३४७ ई. सन् पूर्व बालक का जन्म हुआ।* गर्भ के समय चन्द्रपान की इच्छा हुई थी, इस लिये उसका नाम 'चन्द्रगुप्त' रखा गया । वह होनहार बालक दिन प्रतिदिन चान्दकी तरह बढ़ता हुआ कुमार अवस्थाको प्राप्त हुआ । 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात' की कहावतके अनुसार कहा जाता है, कि चन्द्रगुप्त बचपनमें ही राजाओंके जैसे कार्य करता था। कभी साथि .चन्द्रगुप्त के जन्म समयके सम्बन्ध में कुछ मतभेद प्रतीत होता है, 'प्राचीन भारतवर्ष' (गुजराती) के लेखक डॉ. त्रिभुवनदास लहेरचंद शाह, चंद्रगुप्त का जन्म वीरनिर्वाण सं० १५५ तथा ईस्वी सन् ३७२ वर्ष पूर्व लिखते हैं। प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रंथ 'परिशिष्ट पर्व' से भी इसी की पुष्टि होती है। www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.521537
Book TitleJain Satyaprakash 1938 08 SrNo 37 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages226
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size4 MB
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