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શ્રી જન સત્ય પ્રકાશ-વિશેષાંક
रीति से निगोद का स्वरूप समझाया। स्वरूप सुनकर ब्राह्मण हर्षित आ। फिर अपना हाथ लम्बाकर पूछता है; महाराज! मेरा आयुष्य कितना है? यदि थोडा हो तो कुछ साधना करलु ।
गुरु महाराज को हाथ देखते ही ज्ञात हुआ कि इनका आयुष्य तो सागरोपम का है । तत्काल कालकाचार्य समझ गए कि यह तो इन्द्र है अतः आयुष्य बताने के बदले कहाः-" हे इन्द्र ! धर्मलाभोस्तु ” तत्पश्चाद् इन्द्र ने प्रगट होकर दस दिशाओं में उद्योत किआ, वंदन स्तुति को तथा सीमंधर स्वामी के पास जाने सम्बन्धी समस्त वृतान्त कहा। । इसके पश्चाद् कालकाचार्य महाराज लम्बे समय तक निर्मल चारित्र पालन कर समाधिपूर्वक देवलोक पधारे ।
उपसंहार
कालकाचार्य के जीवन से अपनको इतना तो अवश्य स्वीकार करना होगा कि ये एक ऐतिहासिक पुरुष थे, जोकि अनेक विद्याके पारगामी थे, शासन प्रभावक थे, और बाण विद्याके निष्णात थे। इन्होंने साध्वी सरस्वती की रक्षार्थ जिस वीरता का परिचय दिया यह इनके चरित्र से पूर्णतया ज्ञात हो जाता है । इनका ज्ञान कितना गम्भीर था कि स्वयं सीमंधरस्वामी ने इन्द्र महाराज के समक्ष इनकी प्रशंसा की। इन्द्र महाराज भी इनके दर्शनार्थ प्रतिष्ठानपुर में आये और आचार्यश्री से निगोदका स्वरूप समझा।
ये कितने न्यायप्रिय, दयालु और उपकारी थे कि जिस गर्दभिल्ल ने इनकी बहिन साध्वी पर घोर अत्याचार किया और वह इनका कैदी होजाने पर भी उसे जीवितदान दीया। इसके अतिरिक्त राज्यका विभाग करते समय अपने भानजे का पक्ष न लेते हुए उस 'साखी' राजाको खास उज्जैनी का राज्य दीया जिसके यहां आश्रय लिया था ।
वर्तमान युग में अन्य समाजबाले जैनधर्म पर यह आक्षेप रखते हैं कि यदि भारत को निर्बल बनाया हो तो जैनियों ने, परन्तु मैं उन समाजवालों से सविनय प्रार्थना करूंगा कि वे किंचित् जैनधर्म के भूतकालीन चरित्रों पर दृष्टि डालें तो उनका यह भ्रम दूर हो जायगा।
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