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________________ ४ १-२] કાલકાથાય [१०] कई दिनोंतक गर्दभिल्ल के सैन्य का एक भी व्यक्ति दुर्ग पर दिखाई नहीं दीया। समस्त वातावरण शान्त मालूम हुआ। यह देख एक साखी राजाने पूछा, “गुरुदेव ! यह क्या मामला है। इस कटोकटि के समय, इस प्रकार शान्त वतावरण क्यों ?" राजाके पूछने पर आचार्यश्रीने योग दृष्टि से देख उन लोगों से कहा कि “ गर्दभिल्ल राजा एक 'गर्दभी विद्या' की साधन कर रहा है। किंचित् देखो कहीं दुर्ग पर गर्दभी दिखाई देती है ? " खोज करने पर मालूम हुआ कि एक स्थान पर एक गर्दभी मुंह खुल्ला करके खडी है। आचार्यश्रीने इसका यथार्थ तत्त्व समझाते हुए कहा:-“जब इस राजाको गर्दभी विद्या सिद्ध हो जायगी तब यह गर्दभी शब्द करने लगेगी; उन शब्दों को राजाके शत्र सुनेंगे उनको लहूकी के होकर भूमिपर गिर मृत्युके शरण होंगे।" यह बा सुन साखी राजा भयभीत होने लगे; परन्तु आचार्य देवने कहा, इसमें भयभीत होने जैसा कोई कारण नहीं। तुम अपने अपने सैन्यको पांच कोस दूरी पर लेजाओ। इसमें से अच्छे कुशल १०८ एकसो आठ बाणावलीयोंको आचार्यश्रीने अपने पास रक्खे । जब गर्दभीने शब्द करने के लिए मुंह खोला तब सब बाणावलीयोंने एक ही साथ इस प्रकार बाण छोडे कि वे सब के सब गर्दभी के मुंह में प्रवेश करनेसे गर्दभी शब्दोश्चारण न कर सकी। परिणाम यह हुआ कि स्वयं गर्दभी राजा पर कुपित हो उसके मस्तक पर विष्ठा कर, लात मार कर आकाश मार्ग की ओर चली गई। साखी राजाओं के सुभटोंने दुर्ग की दीवाल तोड वे अंदर घुसे। और गर्दभिल्ल को कैज कर कालकाचार्य के पास लाए। आचार्य को देखते ही गर्दभिल्ल राजा लज्जित हो गया। आचार्य देवने उसे उपदेश देते हुए कहा- एक सती साध्वी के चरित्र भंग के पापका यह प्रायश्चित्त तो एक पुष्प मात्र है। भविष्य में-परलोकमें इसका फल और भोगना होगा।' साखी राजाओं के उपर जो आपत्ति के बादल मँडरा रहे थे वे गर्द. भिल्ल के कैद होते ही दूर हो गये । साखी राजा अपने प्रति अत्याचार करने वाले गर्दभिल्ल को मौत की सजा देने लगे, परन्तु आचार्य देवने कहा पापी का नाश पाप द्वारा ही होता है । ऐसा कह उसे मुक्त कराया। इसके पश्चाद गर्दभिल्लने उस देश का त्याग कर दीया । आचार्यश्रीने इस राज्य का विभाग करते हुए जिस साखी राजा के यहां स्थिरता की थी, उसे खास उज्जैनी का राज्य दीया । और अन्य ९५ Jain Educ रालाओं को मालवदेश के विभाग करके बांट दीये । www.jainelibrary.org
SR No.521537
Book TitleJain Satyaprakash 1938 08 SrNo 37 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages226
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size4 MB
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