________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 ] સમીક્ષાશ્વમાવિષ્કારણ [ 323 वाचकद्वन्दने दृष्टिगोचर करेल पाठनो निःष्यन्द उपर जणावेल आचाराङ्ग सूत्रनो पाठ आहारने अंगे माया सेवनने निषेधि शुद्ध मार्गनुं दर्शन करावे छे. आमां पण प्रथम मायाना बे प्रकारो बतावी तेनो बहिष्कार करवामां आवेल छे, आ बेमाथी प्रथम प्रकार ए छे के ग्रामान्तरथी आवेल मुनिराजने खोटुं समजावी बहारनों गामोमां गोचरी माटे मोकलवा तथा बीजो प्रकार ए छे के आगन्तुक मुनि न जाणी जाय तेम गुप्त रीते आहार लावी वापरवो. बादमां हुं निरन्न छु एवो आडंबर करी ते आगन्तुक प्राघूर्णक मुनिनी साथे गोचरी पाणी जवु आवq. आ बेमांथो द्वितीय प्रकारमा आहारनां कतिपय नामो बतावतां नव विगइयोनां नामो पण बताववामां आव्यां छे / आशाम्बरीय मन्तव्य __ आ नव विगइओनी नामावलीमां मध माखण ने मांस मदिरानां नामो आवेल होवाथी निरुक्त पाठ मुनिने मांस भक्षणादिनी अनुमति आपे छ / उक्त मन्तव्यनी विचारविकलता आशाम्बर लेखकनी आ मान्यता सद्विचारना सामा किनारानी छे, आशाम्बर लेखके भूलवू नोतुं जोइतुं के आ बे प्रकार मायाना घरना छे. आनी मित्राचारीमा दोषावलीनो हार पेरवानो छे. माटे बनती त्वराए तेने त्यजो एवो बोधपाठ उपरनो पाठ पाठवे छे. / आशाम्बरीय आशङ्का वारु, निषेध तो प्राप्त वस्तुनो ज होइ शके छे. मध माखण ने मांस मदिरा तो मुनिजनने प्राप्त ज नथी. कारण ? ए तो दीक्षादिनथी ज त्याज्य छे. अत एव मध मांखण ने मांस मदिराने निषेध कोटीमां मुकवानी जरूरत रहेती नथी, छतां पण मुकेल छे. माटे हुं मानुं छु के मध माखण ने मांस मदिरा कल्प्य छे एम आ पाठ जणावे छे. आशङ्कानो उत्तर मुनि अवस्थामां जे प्राप्त होय तेनो ज मुनिने निषेध होइ शके, एवं एकांत कथन स्याद्वादवादनी अनभिज्ञताने आभारी छ / आ एकान्त कथन स्वीकारवामां आवे तो माया सेवननो निषेध पण व्यर्थ जशे. कारण ? मुनिने माया सेवन तो दीक्षादिनथी ज त्याज्य छे. आशाम्बर लेखक एवं तो साहस नहि ज खेडी शके के माया सेघननो निषेध पण न करवो, कारण ? दिगम्बर ग्रन्थे दिगम्बर मुनिने मायावर्जननां अनेक वाक्यो समा छे / तथा प्राप्तवस्तुनो निषेध मानीने नीचेना. पाठानो प्रधेश कई रीते थई शकसे ? For Private And Personal Use Only