________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिगम्बर शास्त्र कैसे बने ? लेखक-मुनिराज श्री दर्शनविजयजी (गतांकसे क्रमश:) प्र० १९-भट्टारक सोमसेन दिगम्बर समाजमें गृहस्थधर्मक निरूपणके निमित्तके भिन्न भिन्न त्रिवर्णाचारोंका निर्माण हुआ है। उसमें भट्टारक सोमसेनजीका त्रैवर्णिकाचार बहूत प्रसिद्ध है, जो छपचुका है। इसकी रचना किसके आधारपर हुई है उस विषयकी सप्रमाण विचारणा " ग्रंथसर्जन' विभागमें कि जायगी, यहां तो सिर्फ इतना ही बताना चाहता हूं कि भट्टारकजोने ग्रंथ-निर्माण कैसे किया / और उसके लिये दिगम्बर विद्वानोंका क्या मत है। १-श्रीयुत पं. पन्नालालजी सोनी लिखते हैं कि__“ग्रन्थ (त्रैवर्णिकाचार) की प्रमाणतामें भी हमें कुछ संदेह नहीं होता। प्रतिपादित विषय जैनमतके न हों जौर उनसे विपरीत शिक्षा मिलती हो तो प्रमाणतामें संदेह हो सकता है। ग्रन्थकी भूल भित्ति आदिपुराण परसे खडी हुई है। जिनका आधार उन्होंने लिया है उनके ग्रन्थोमें भी वे विषय पाये जाते हैं। किंबहुना इस ग्रंथके विषय ऋषिप्रणीत आगममें कहीं संक्षेपसे और कहीं विस्तार से पाये जाते हैं। अतएव हमें तो इस ग्रंथमें न अप्रमाणता ही प्रतीत होती है और न आगमविरुद्धता ही। परन्तु जो लोग वर्णाचार जैसे विषयोंसे अनभिज्ञ हैं, उनके पालनमें असमर्थ हैं, उनकी परंपराका जिनमें लेश भी नहीं रहा है वे इसके विषयोंको देखकर एकवार अवश्य चौकेंगे। जो वर्णाचार को निरा ढकौसला समझते हैं वे अवश्य इसे धूर्त और ढौंगीप्रणीत कहेंगे। जिनके मगज में भट्टारक और त्रिवर्णाचार नाम ही शल्यवत् चुभते हैं वे अवश्य इसे अप्रमाणता और आगमविरुद्धताकी ओर खसीटेंगे इसमें जरा भी सन्देह नहीं / पद्मपुराण हरिवंशपुराण महापुराण यशस्तिलकचम्पू जैसे पुराण और चरित ग्रंथोंको, विद्यानुवाद विद्यानुशासन भैरवपद्मावतीकल्प ज्वालामालिनीकल्प जैसे मंत्र शास्त्रोको, इन्द्रनन्दि प्रतिष्ठापाठ वसुनन्दि प्रतिष्ठापाठ आशाधर प्रतिष्ठापाठ नेमिचंद्र प्रतिष्ठापाठ अकलंक प्रतिष्ठापाठ जैसे पूजाशास्त्रोंको, रत्न-, करंडक मूलाचार आचारसार धर्मामृत जैसे आचार ग्रन्थोंको, त्रिलोकप्रज्ञप्ति त्रिलोकसार जैसे लोक व्यवस्थापक शास्त्रोंको एवं एक एककर जैनमतके सभी विषयोंको अप्रमाण और अलीक (झूठा) मानते हैं वे इस ग्रन्थको अप्रमाण और ढौंगी प्रणीत मानें इसमें आश्चर्य ही क्या है ? जब कि जैन धर्म जैसे कल्याणकारी धर्मको झूठा कहनेवालो जैन ही नही, जैननामधारी भी (दिगम्बर जैन ) संसारमें मौजूद हैं तब इस सामान्य ग्रन्थकी अवहेलना करनेवाले इस संसारमें न पाये जांय यह हो नहीं सकता।" जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय, हीराबाग, गिरगांव, बम्बइ से वीरनि. For Private And Personal Use Only