SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org लेखक: दिगंबर शास्त्र कसे बने १ - मुनिराज श्री दर्शनविजयजो ( गतांक से क्रमशः ) प्रकरण १५-आ० जिनसेन आ० गुणभद्र मैं शुरू में लिख चुका हूं कि - दिगम्बर समाज स्त्री-मुक्ति को मानता नहीं है साथ साथमें स्त्रीओंके सम्यकू चारित्रको भी मानता नहीं है । मगर प्राचीन जैन साहित्य में तो स्त्री - चारित्र के अनेक प्रमाण उपलब्ध होते हैं । अतः इन आचार्यांने भी महापुराणम स्त्री दीक्षाके प्रसंग यथा प्राप्त ही वर्णित किये हैं। देखिए उदाहरण: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरतस्यानुजा ब्राह्मी, दीक्षित्वा गुर्वनुग्रहात् । गणिनीपदमार्याणां सा भेजे पूजिताऽमरैः ॥ आ० प० २४ श्लो० १७५ ॥ सुंदरी चात्तनिर्वेदा, तां ब्राह्मीमन्वदीक्षत | अन्ये चान्याञ्च संविज्ञा, गुरो यात्राजिषुस्तदा || आ० २४ । १७७ ॥ सुलोचना व सुभद्राकी दीक्षा ( ० ५० ४७ श्लो० २८८ ) जिनदत्तार्यकाभ्यर्णे, श्रेष्ठीभार्या च दीक्षित । उ०७१ । २०६ । तथा सीता महादेवी, पृथिवी सुंदरीयुताः । देव्यः श्रुतवती क्षांति - निकटे तपसि स्थिताः । उ० ६८ । ७१२ ।। भगवान् महावीर स्वामी के संघ के साबु, आर्यिका श्रावक और श्राविका की संख्या उत्तरपुराण, पर्व ७४ श्लोक ३७१ से ३७९ में उल्लिखित है । यहां साधु और आर्यिका छठे गुणस्थानकवाले स्वीकृत हैं, श्रावक श्राविका पांचवे गुणस्थानकवाले हैं और इस गणनामें एलक-झुलक की संख्या नहीं है। अतः वे श्रावक में दर्ज माने जाते हैं, जबकि आर्यिका तो छठे गुणस्थान में ही स्थित है । आर्याओंमें चन्दना मुख्य है । श्लो० ३७९ ।। सुव्रता गणिनी, गुणवती कार्या । उ० प० ७६ श्लो० १६५ से १६७ ॥ पंचम आरेकी अंतिम साध्वी सर्वश्री । उ० ० ७६ श्लो० ४३३ ॥ आ. जिनसेनके कुछ समकालीन पुन्नादसंघीय आ० द्वि० जिनसेन ( श० सं० ७०५ ) ने हरिवंश पुराण बनाया है । रचना कालमें करीब करीब एकता होने पर भी हरिवंश पुराण और महापुराण के कथन में भिन्नता स्पष्ट नजर आती है । जैसेकिः श्वेताम्बर शास्त्रो में भ० ऋषभदेवको दो पत्नीके नाम हैं सुमंगला और सुनन्दा | जबकि महापुराण प० १५ श्लोक ७० में नाम दिये हैं। यशस्वती और सुनन्दा । तथा हरिवंश नाम लिखे हैं नन्दा और सुनन्दा । कीचक के दूसरे भवके लिये भी इन पुराण सर्ग ९ श्लो० १८ में For Private And Personal Use Only
SR No.521527
Book TitleJain Satyaprakash 1937 12 SrNo 29
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1937
Total Pages42
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy