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[१८] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[१५३ को मनोवांछित दिया, हरराज और मेघराज सहित चिरंजीवी रहे। उस समय जींदाशाह ने २००) रूपए दे कर इन्द्रमाल ग्रहण की। जीवराज भी पुत्र सहित शोभायमान था।
इसके पश्चात् अहमदाबाद के सुप्रसिद्ध संघपति रूपजी की चिठी नफरइ (डाकिया)ने लाकर दी। शत्रुञ्जय प्रतिष्ठा के लिए सूरिजी को बुलाया था। तब करमसी शाह और माल्हु अरजुन ने उत्साहपूर्वक संघ निकाला। गांव गांव में लाहण करता हु संघ श्रीजिनराजसूरिजी के साथ शत्रुजय पहुंचा। युगादि जिनेश्वर के दर्शन कर संघने अपना मनुष्यजन्म सफल किया। ___अब कवि रूपजी शाह के विषय में कहता है कि अहमदाबाद के खरतर गच्छीय श्रावक सोमजी और शिवा दत्तुपाल तेजपाल की भांति धर्मात्मा हुए, जिन्होंने सं० १६४४ में शत्रुञ्जय का संघ निकाला। अहमदाबाद में महामहोत्सवपूर्वक जिनालय की प्रतिष्ठा करवाई। खंभात, पाटण के संघ को आमन्त्रित कर पहरावणी की। राणकपुर, गिरनार, सेरिसइ गौडीपुर, आबू आदि तीर्थों की संघ सहित यात्रा की, साधर्मीवात्सल्य किया। खरतर गच्छ संघ में लाहण की। प्रत्येक घर में अर्द्ध रूपया दिया । स्वधर्मीयोंको बहुत वार सोने के वेढ पहनाए । शत्रुञ्जय पर शान्तिनाथ चैत्य बनवाया। सोमजी शाह के रतनजी और रूपजी दो पुत्र थे। रतनजी के पुत्र सुन्दरदास और शिखरा सुप्रसिद्ध थे। रूपजीशाहने शत्रुञ्जय का आठवाँ ऊद्धार कराके खरतर गच्छकी बडी ख्याति फैलाई। सं० १६७६* वैशाख शुक्ला १३ को चौमुखजी की प्रतिष्ठा श्रीजिनराजवरिजी के हाथ से करवाई। मारवाड, गुजरात का संघ आया। याचक, भोजक, भाट, चारणों को बहुतसा दान दिया।
श्रीजिनराजसूरिजी संघके साथ विहार कर नवानगर चातुर्मास किया। भाणवड में शाह चांपसी (बाफणा) कारित बिम्बों की प्रतिष्ठा की। गुरुश्री के अतिशयसे बिम्बसे अमृत झरने लगा। जिससे अमीझरा पार्श्व प्रसिद्ध हुए। मेडताके संघपति आसकरणने आमन्त्रण कर सं० १६७७+ में श्रीशान्तिनाथजी के मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। बीकानेर चातुर्मास कर सिन्ध देश पधारे । मुलतान, मेरेठ, फतेपुर, देरा के संधने सामैया कर प्रवेशोत्सव किया। मुलतानी संधने बहुतसा द्रव्य व्यय किया। गणधर शालिभद्र, पारिख तेजपालने संघ निकाल कर सूरिजीको देरीवर श्रीजिनकुशलसूरिजी की यात्रा करवाई। सूरिजीने पंच पीरों को साधन किया,
[देखो पृष्ठ १९] *शिलालेखों में गुजराती पद्धतिसे सं० १६७५ लिखा है। +शिलालेखों में जेठ बदि ५ लिखा है।
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