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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१०८] શ્રી જેને સત્ય પ્રકાશ (વર્ષ ૩ - नहीं होवा छतां एकवार आहार लइ शकाय छे. तथा १ उपवास करनार बे वार पण आहार लइ शके छे, तथा अठमथी अधिक ४, ५, ६,७ वगेरे उपवास करनार ज्यारे ज्यारे आहारनी रुचि थाय त्यारे त्यारे आहार लइ शके छे. उपवासनी संख्या अने आहारनी संख्यानो नियम नथी. तथा आ प्रस्तुत कल्पसूत्रना पाठमां पाओ' [प्रातः] शब्द मुकेल छे तेना उपर वधारे ध्यान खंचवानी जरुरत छे. मुनिओनो गोचरीनो काल त्रिजा पहोरनो होय छे त्यारे आमां प्रातःकाल [सवारनो काल] बतावेल छ. आ जणावे छे के उपवासना पारणे उपवास करनार कोइ मुनिने क्षुधा वेगवती होय तो शु सवारना गोचरी पाणी जइ शकाय? आवी जिज्ञासाना सम्बन्धमा प्रत्युत्तररूपे आ वाक्य छ जे सवारना जइ शकाय. हवे प्रातःकालना समये गृहस्थने त्यां ताजां आहार पाणी प्रायः असम्भवित छ, अने वासो अभक्ष्य खपे नहि. एटले छास अने कुरा जेवी वस्तु लावी आहार पाणी करे. हवे आनाथी ज जो निर्वाह चाली शके तो ते दिवसे फेर नहि वापरता तेनाथी ज चलावी लेवु. बीजी वार आहार करवो नहि. कदाच आटलाथी गत दिननी क्षुधानी शान्ति अने आगामी दिन उपवास करवानो होवाथी तेनो निर्वाह अशक्य जणाय तो बीजीवार पण आहार पाणी माटे जइ शकाय छे. अहींया उपवासनी संख्या १ त्यारे पारणाने दिन आहारनी संख्या २ छे, तेवी रीते छठने पारणे छठ करनार मुनिने पारणाने दिन गत बे दिननी क्षुधानी शान्ति करवानी छे तथा आगामी बे दिनना क्षुधाना वेगने रोकवानो छे. आ प्रातःकालना लघुभूत आहारथी अशक्य थइ पडे तेवी स्थितिमां बे वार आहार पाणी माटे जवानुं बतावेल छे. तथा अठमने पारणे अठम करनार मुनिने गत प्रण दिननी क्षुधानी शान्ति अने आगामी दिनत्रयनी क्षुधाना वेगने रोकवानो छे ते प्रातःकालना लघुभूत एक वखतना आहारथी अशक्य थइ पडे तेवी स्थितिमां बीजी वार आहार माटे जइ शकाय. अठमना तपे मन्द बनेली जठरा बीजी वखते पण एकी साथे खाधेल आहार पचाववा असमर्थ होय ते स्थितिमां बीजी वार थोडो आहार वापरे, त्रीजीवार पण गोचरी माटे जइ शकाय छे. __ एकान्तरे ४, ५, ६, वगेरे उपवास करनार मुनिने पारणाने दिन गत ४, ५, ६, वगेरे दिननी क्षुधानी शान्ति तथा आगामी तेटला दिननी क्षुधाना वेगर्नु रोकाण १ बारना आहारथी अशक्य थइ जाय. अने जठराग्नि विशेष मन्द होवाथी जठराग्निनी अनुकूलताए ज्यारे ज्यारे आहारनी इच्छा थाय त्यारे त्यारे जइ शके छे. एक ज वार लावेला आहार राखी मुकी वारंवार वापरी शकाय नहि, कारणके जीव संसक्ति अने सघ्राण वगेरे दोषनो संभव छे. अहीं उपवासनी संख्या अने पारणाना दिनना आहारनी संख्यामां समानतानो नियम नथी। For Private And Personal Use Only
SR No.521525
Book TitleJain Satyaprakash 1937 09 10 SrNo 26 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1937
Total Pages60
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size30 MB
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