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૧૯૯૩
પુરાતન ઇતિહાસ અને સ્થાપત્ય सीताबाई सहितया पाषाणेष्टकामयी प्रतोली सहिता धर्मशालेयं कारिता तस्यां च क्रियमाणायां तदंतर्गत भूभागात् श्री जिनेश्वराणां मूर्तयः ९ प्रादुर्भूतास्तासां प्रतिष्ठामहोत्सवेन सह पंचमी तपउद्यापन महोत्सवोप्यत्र समागत्य श्री संघमाकार्य च महता द्रव्यव्ययेनाऽनय श्राविक्यौवकृतः लिखीतोऽयं शिलालेखः ॥ पंन्यास श्री संपदविजय गणिना ॥
___ यह लेख मांडवगढ के जैन कारखाने के कंपाऊंड के बडे दरवाजे के दाहिने तरफ को कोठडी के पश्चिम दरवाजे के ऊपर सफेद पाषाण के फरसी पर खुदा हुवा होकर दीवाल में लगा हुवा है।
मांडवगढ जैन मंदिर के अंदर रही हुई प्रतिमाओं के लेख
(१०) संवत १५१३ वर्षे ज्येष्ठ वदी ५ मौढ ज्ञातिय स० लखमा लखमादे मुत स० समधरण भार्या माई सुत देवीसींग हिगां गुणी आहासा पावा प्रमुख कुटुंब युतेन सुश्रेयसे श्री अनंतनाथादि चतुर्विशंतिपट्टः आगमगच्छ श्री जयानंदसूरेिपट्टे श्री देवरत्नमृरिगुरुपादासनकारितः प्रतिष्ठापितं श्रु ॥ श्रुभं भवतु ॥ सिरपिज वासूव्य-लेखके बीचमे सेर ९७११ लिखा हुवा है ।
यह लेख धातु की चौवीसी पर है।
(११) संवत १५३५ माह बदी ५ भोम प्राग्वाट ज्ञातिय सं. गोपा भार्या सलग्वणदे पुत्र गुणा भा० लीलादे पुना धा पूर्वज निमीतं श्री धर्मनाथ बिबं कारापितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्री लक्ष्मीसागरसूरिमि श्रुभं
यह लेख धातु की पंचतीर्थ पर है।
(१२) संवत १५२७ वर्षे आषाढ सुदी १० बुधे श्री श्री वंशे ॥ सं. कर्मा भार्या जामू पुत्र सं. पहिराज सुश्रावकेण भार्या गळू पुत्र सं. महिपा सोपा रूपा सहितेन पत्नी पुण्यार्थे श्री अंचलगच्छाधीश्वरणामुपदेशेन श्री सुविधीनाबिंब कारितं प्रतिष्टितं श्री संघेन श्री पत्तननगरे
यह लेख धातु की पंचतीर्थ पर है।
(१३) संवत १९२१ नाशके १७८६ प्रा माघमासे शुक्लपक्षे सप्तमी तिथौ गुरुवासरे अंचलगच्छे ज्ञातिपुत्र जेठना नातना जिन बिंबः ॥
यह लेख धातु की चार इंची छोटी प्रतिमा पर है
(१४) संवत १३३३ वर्षे माघ सुदी ७ सोमे आचार्य श्री........आगे नहीं बचता
यह लेख श्याम पाषाण की पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा पर है।
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