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શ્રી જન સત્ય પ્રકાશ
- વૈશાખ बाहर भटकना पड़ता है। आशा है अब भी हम सत्य को समझकर हमारे ग्रन्थरत्नों की खोज में लग जायेंगे। नंदीसूत्र उल्लिखित अलभ्य ग्रन्थः--
उत्कालिक श्रुतः-१ कल्पाकल्प । २ चुल्ल (क्षुल्क !) कल्प । ३ महाकल्प । ४ महाप्रज्ञापना । ५ प्रमादाप्रमाद । ६ पोरसी मंडल । ७ मंडल प्रवेश । ८ विद्या चारण विनिश्चय । ९ आत्मविभक्ति (विशुद्धि)। १० ध्यान विभक्ति । ११ संलेखनाश्रुत । १२ वीतरागश्रुत । १३ विहार कल्प । १४ चरणविधि ( विशुद्धि )।
कालिक श्रुत-१६ क्षुल्लक विमान प्रविभक्ति। १६ महाविमान प्रविभक्ति । १७ अंगचूलिका । १८ वर्गचूलिका । १९ विवाहचूलिका । २० अरुणोपपात। २१ वरुणोपपात । २२ गरूडोपपात । २३ धरणोपपात । २४ वेश्रमणोपपात । २५ वेलंघरोपपात । २६ देवन्द्रोपपात । २७ उत्थानश्रुत । २८ समुत्थानश्रुत । २९ नागपरिज्ञावलिका । पाक्षिक सूत्र उल्लिखित अलभ्य ग्रन्थः- -
३० आसीविष भावना । ३१ दृष्टिविष भावना । ३२ महास्वप्न भावना । ३३ चारणस्वप्न भावना । ३४ तैजस निसगीं। ३५ नरक विशुद्धि (जे. सा. सं. इ.)। प्राभृत ग्रन्थः
योनि प्रामृत-धारसने कृत (सं. १३०) प्र.८०० (बृहत टिप्पनिका उल्लिखित)। सिद्धि प्रामृत । निमित्त प्रामृत । विद्या प्राभृत । प्रतिष्ठा प्रामृत । कर्मप्राभृत (कर्मग्रन्थ उल्लिखित ) विज्ञानप्रामृत । कल्पप्रामृत (विविध तीर्थ कल्प उल्लिखित )। स्वर प्राभृत (ठागांग टोका उल्लिखित ) । नाट्यविधि प्रामृत (रायपसेणी टोका उल्लिखित)। नियुक्तिय:
कर्ता
उल्लेख सूत्रप्रज्ञप्ति नियुक्ति
भद्रबाहु
आवश्यक नियुक्ति ऋषिभापित नियुक्ति अनुयोग:--- लोकानुयोग
कालिकाचार्य
पंचकल्पभाष्य प्रथमानुयोग
, जैनप्रभा, वर्ष १, पृ. १३० संहिता:
कालकसंहिता १. बृहत्कल्प की किसी किसी हस्तलिखित प्रति में उसीका नाम महाकल्पसूत्र लिखा है । पर ये भिन्न भिन्न ज्ञात होते हैं ।
२. उपलब्ध अंगचुलिया बंगचुलिया संभवतः पीछे के बने हुए हैं, उनकी प्राचीन से प्राचीन लिखित प्रति कब की मिली है इसकी खोज करना आवश्यक है। नन्दी की विषय विचारणा से रायपसेणी सूत्र भी उपलब्ध रायप्रसेगी से भिन्न हाना चाहिये । दृष्टिबाद भी अलभ्य है पर वह बहुत पूर्व ही नष्ठ हो चुका था अतः सूचिमें नहीं लिखा गया. ।
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