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लुप्तप्रायः जैन ग्रन्थों की सूचि
कर्ता-श्रीयुत अगरचंरजी नाहटा, कलकत्ता कई वष पूर्व दिगम्बर पंडित जुगलकिशोरजी मुख्तार सम्पादित “अनेकान्त' पत्र पढने का सुअवसर मिला था। उसमें लुप्तप्रायः दिगम्बर जैन ग्रन्थों को सप्रमाण सूचि और उन अलभ्य ग्रन्थों का खोजनिकालनेवालों का पुरस्कार देने की योजना प्रगट हुई थी। उसे पढकर श्वेताम्बर समाज के भी सेंकडे ग्रन्थ जिनके होने के मात्र उल्लेख ही पाये जाते हैं पर उनकी प्रतियां नहीं मिलती-उनकी सूचि बनाने की सहज इच्छा जागृत हुई, परन्तु साधनाभाव से उसे शीघ्र ही कार्यरूप में परिणत नहीं कर सका।
गत वर्ष जब मैं कलकत्ते में था उस समय इस सम्बन्ध में लेख लिखकर साहित्यसेवी विद्वानों का ध्यान आकर्षित करने के विचार से, जैनधर्म प्रचारक सभा भावनगर के स्वर्ण ज्युबीली महोत्सव के उपलक्ष में “जैनधर्म प्रकाश" का विशेषांक निकलनेवाला था उसमें प्रकाशनार्थ "अलभ्य ग्रन्थों की खोज" शीर्षक एक लेख भेजा। परन्तु लेग्य विलम्ब से पहुंचने से उक्त अंक में प्रकाशित न हो सका। अतः उसको "जैन" पत्र में प्रकाशनार्थ भेजा । उसमें उस लेख का कुछ हिस्सा प्रकाशित होने के पश्चात् आगे उसका प्रकाशन नहीं किया गया, और वह अधुरा ही रहा।
इसके पश्चात् जब मैं बिकानेर गया, इस विषय में विशेष रूप से खोज करना प्रारम्भ किया, और उसके फल स्वरूप जितनो सामग्री संग्रह कर सका उसकी एक सप्रमाण (उल्लेखवाले ग्रन्थों के नामसह ) मूचि तैयार की। पर उसे किसी गम्भीर जैन साहित्यसेवी विद्वान् मुनिमहाराज को दिखाये बिना प्रकाशित करना उचित नहीं समझकर, पाटणस्थ पूज्य मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराज को वह सूचि अबलोकनार्थ भेजी और उन्होंने संशोधनानुसार उसे व्यवस्थित की, जो यहां प्रकाशित की जाती है।
इस सूचि में नांधित ग्रन्थों में के कई तो सैंकडे वर्षों से ही अनुपलब्ध मैं पर कई तो अभी १००-२०० वर्षों में ही लूप्त हो गये हैं। भंडारों में खोज करने से उनके मिल जाने की पूर्ण सम्भावना है। अभी तक जैन समाज में साहित्य प्रेम जैसा चाहिए उसका १६मा भाग भी नहीं है। इसीसे सैंकडों जगह हस्तलिखित ग्रन्थों के भंडार हैं पर अधिकांश भंडारों के तो ताले ह। लगे रहते हैं। न तो उनकी सूचि ही बनी है न समय पर किसी साहित्य प्रेमी के निवेदन करने पर भी वे ग्रन्थ देखने मिलते हैं। इसी कारण हमारे भंडारों में हजारां साहित्य-पुष्प के होने पर भी साधारण साहित्य-प्रेमी की तो बात ही क्या, बडे बडे विद्वानों को भी उनकी सुवास लेने का सुअवसर नहीं मिलता। घर में अनेक रत्नों के होने पर भी हमें उनके लिये
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