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સર્વમાન્ય ધર્મ प्राप्ति करने का एक ही रास्ता है, वह यह है कि गुणवान् महात्मा की याने सत्पुरुषों के सन्मान की ओर हरदम झुकता रहे । कोई भी आदमी गुण और गुणवान का सन्मान किये बिना कभी गुणवान नहीं बन सकता है, और इसी से ही शास्त्रकारों ने संतकी स्तुति की बडी ही महिमा दिखाई है। यह विचार औन्नत्य का दूसरा भेद है । ३ जिस तरह अपराध की माफी लेने देने के साथ सर्व जीवों के हित का सोचना और सत्पुरुषों की सेवा के लिये हरदम भावना-युक्त होना कहा है उसी तरह शारीरिक या आत्मिक तकलीफ से हैरान होनेवाले जो कोई भी जन्तु हां उन सबकी तकलीफ मिटाने का विचार होवे, यह विचार औन्नत्य का तीसरा भेद है । ख्याल करने की जरूरत है कि जिस जन्तु ने पाप बांधा है वह तकलीफ पाता है; लेकिन तकलीफ पानेवाले प्राणी की तकलीफ दूर करने से तकलीफ दूर करनेवाले को बड़ा ही लाभ है । जैन शास्त्र के हिसाब से पाप का फल अकेली तकलीफ भुगतने से ही भुगता जाता है ऐसा नहीं है; किन्तु जैसे केले के अजीर्ण में इलाइची या आम के अजीर्ण में सुंठ देने से विकार दूर हो जाता है, लेकिन वह केले और आम की वस्तु उड नहीं जाती है, उसी तरह बंधा हुआ पाप का रस टूट जाय और कम हो जाय इससे, उस दुःखी प्राणि का दुःख कम हो जाता है । दवाई देने से जैसे बीमार की तकलीफ मिट जाती है, उसी तरह दयालु महाशयों के प्रयत्न से दुःखी प्राणियों का दुःख भी दूर हो सकता है । इससे दुःखी प्राणियों के दुःख को दूर करने का जो विचार होवे वह विचार - औन्नत्य का तीसरा भेद है।
___४ जगत में कितनेक प्राणी ऐसे होते हैं कि जिनके हित के लिए प्रयत्न करें, दुःख दूर करने के लिये कटिबद्ध होवें, तब भी उन प्राणियों के कर्म का (पाप का ) उदय विचित्र होने से या चित्तवृत्ति अधम होने उनका हित न होवे । इतना ही नहीं लेकिन वह अपने आप अहित में ही या दुःख के कारण में ही मस्त हो जाय । वैसे प्रसंग में किसी तरह से भी उस हित करनेवाले आदमी को उस जन्तु पर द्वेष नहीं करना, लेकिन कर्म
और उनके फलों को सोचके उदासीन वृत्ति में रहना यह विचार-औन्नत्य का चौथा भेद है। . उपसंहारः-इन चारों ही तरह से विचार के औन्नत्य को धारण करनेवाला प्राणी धर्मनिष्ट या धर्मपरायण हो सकता है। इससे हरेक आदमी को दानादि धर्मपरायणता ग्रहण करने के साथ इस विचार-औनत्य को धारण करना चाहिए । आप सञ्जन गण का ज्यादे वक्त नहीं लेके मे रे वक्तव्य के खतम करते इतना ही कहूंगा कि सच्चिदानन्द आत्मा को खोजने के लिए कटिबद्ध होनेवाले सज्जनों को उपर्युक्त मार्ग में आना ही चाहिये।
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