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સર્વમાન્ય ધર્મ और लक्ष्यार्थ दोनों तरह से मानने में कभी नहीं हिचकायगा । हिन्दुजाति को मतलब ही यही है कि आत्मा को एक भव से दूसरे भव, दूसरे भव से तीसरे भव, इस तरह से घुमनेवाला ही माने । हिन्ड् धातु धुमने के अर्थ में है, और घुमनेवाला ही यह आत्मा होने से शास्त्रकाराने आत्मा को हिन्दु माना है और इस तरह से हिन्दु आत्मा को माननेवाले ही हिन्दु गिने गये हैं । ख्याल रखने की जरूरत है कि जिस मजहब के नेता ने एक ही पुनर्जन्म मान के बार बार पुनर्जन्म रूप भवान्तर नहीं माना उन लोगों ने ही हिन्दु जाति को काफर शब्द से पुकारा है । इस स्थान में सर्व धर्म का विचार होने से विशेष विचार न करके 'वास्तविक रीति से स्वर्ग-मोक्ष को देनेवाला धर्म है', यह बात हिन्दु जाति को सभी तरह से मान्य है, ऐसा समज के धर्म के हो विषय में कुछ कहने में आयगा ।
सभी हिन्दुशास्त्र इस विषय में एक मत को धारण करते हैं कि धर्म का नतीजा स्वर्ग और मोक्ष ही है। याने कोई भी हिन्दु स्वर्ग या मोक्ष को असत् पदार्थ नहीं मानता है कि जिससे स्वर्ग और मोक्ष को सिर्फ वाच्यार्थ में रखके इहलौकिक फल को लक्ष्यार्थ की तौर से गिनले । सामान्य शास्त्रीय नियम भी आप लोगों के ख्याल में है कि वाच्यार्थ का बाध होने से ही वाच्यार्थ को छोड के उससे भिन्न ही लक्ष्यार्थ लेना । यहां तो स्वर्ग और मोक्ष ये दोनों पदार्थ अनुमान और शास्त्र से सिद्ध हैं, इससे इधर किसी तरह से वाच्यार्थ का बाध नहीं है । ऐसा यथास्थित स्वर्ग और मोक्ष का कारण धर्म ही हो सकता है। सिवाय धर्म के यदि स्वर्ग और मोक्ष हो जाता हो तो इस जगत में वनस्पति आदि एकेन्द्रिय वगैरह जीवों का अधम जाति में ठहरना और रुलना होता ही नहीं । जैसे अल्प ही संख्या के आदमी पुण्य का कार्य करनेवाले और पुण्य की धारणा रखनेवाले होते हैं, वैसे ही जगत में धन, धान्य, कुटुम्ब, शरीर आदि सब तरह का आनन्दपानेवाले लोक भी अल्प ही होते हैं । इसी नियम से समझ सकते हैं कि धर्म
और पुण्य का फल ही समृद्धि और आनन्द है। और मनुष्य-जन्म में जो कुछ ज्यादा धर्म और पुण्य किया जाय उसके फलरूप आनन्द और समृद्धि भुगतने का स्थान स्वर्ग जरूर ही हेतुवाले को मानना ही होगा। पर्यन्त में जैसे शान्त आदमी प्रसन्नता से दुनिया के वाह्य पदार्थ का संयोग नहीं होने पर भी असीम आनन्द को भुगतता है उसी तरह से सर्व अदृष्ट या कर्म से रहित हुआ स्व स्वरूप में अवस्थित हुआ आत्मा भी निर्वचनीय आनन्द का अनुभव करे उसमें कुछ भी ताजुवी नहीं है । और वैसी दशा को ही शास्त्रकारों ने मोक्ष मनाया है। उससे मोक्ष का असम्भव मानना शास्त्रानुसारियों और युक्ति के अनुसारियों के लिए कभी लाजिम नहीं है ।
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