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વૈશાખ
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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ वजह से बहुत से आर्य धर्म के शास्त्रकारों ने मोक्षपदार्थ का आदि में.स्फोट न करके मोक्ष के कारणभूत धर्म का ही स्थान स्थान पर स्फोट किया है । जैसे जैनशास्त्रकार भगवान् उमास्वाति वाचकजी ने तत्त्वार्थसूत्र के आरम्भ में ही सम्यगदर्शन-ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः ऐसा सूत्र बना के सच्ची मान्यता, सच्चा बोध और सुन्दर वर्तन रूप मोक्ष का रास्ता ही दिखाया। न तो उस मोक्ष का स्वरूप दिखाया न मोक्ष की समृद्धता ही दिखाई । यावत् मोक्ष की परम ध्येयता भी दिखाई नहीं । जगत् में भी अपन देख सकते हैं कि नगर के रास्ते पर चलनेवाला इन्सान उस नगर का सच्चा स्वरूप भी नहीं पहिचानता हो या उलटा ही पहिचानता हो; तब भी वह सच्चे नगर को पाता ही है । इसी तरह से मोक्ष का जो रास्ता है, उसपर चलनेवाला आदमी मोक्ष को पूरी तौर से पहिचाने या नहीं भी पहिचाने तब भी वह अवश्य मोक्ष को पाता है। इसी बात को इधर भी ख्याल रख के मौक्ष के स्वरूप में जो मतमतांतर हैं उनका कुछ भी विवेचन करने में नहीं आयगा ।
क्या स्वर्ग और मोक्ष धर्म का लक्ष्यार्थ नहीं हैं ? -कितनेक साक्षरगण, आस्तिक शास्त्रों में धर्म के फलरूप से फरमाये हुए स्वर्ग को तथा मोक्ष को सिर्फ वान्यार्थ में ही ले जाते हैं, और सांसारिक इहभविक सुखों की सिद्धि को ही धर्म के लक्ष्यार्थ में लेते हैं; याने हिंसा, झूठ, चोरी, स्त्रीगमन, परिग्रह, गुस्सा, अभिमान, प्रपंच
और लोभ को छोड़ने से शास्त्रकारों ने जो स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति दिखाई है, वह सिर्फ वाच्यार्थ याने शब्दों का हो अर्थ है; ऐसा मानते हैं। याने आखिर में न कोई स्वर्ग जैसी चीज है, न कोई मोक्ष जैसी चीज है, लेकिन स्वर्ग और मोक्ष शब्द आगे धरने से हिंसादिक का करना रुक जाय तो जगत में बलवान् इनसान दुर्बल को सताने से दूर रहे, झूठ नहीं बोलके सत्य ही बोलनेवाला होने से प्रामाणिक बन जाय, किसी की कोई भी चोज बिना हक लेने की चाहना न करे, शरीर की रक्षा अच्छी तरह से करे, संग्रहशील न बनके प्राप्त हुई लक्ष्मी का व्यय दुःखी जीवों के उद्धार के लिए करे
और क्रोधादिक विकारों के अधीन बन के निर्विचार दशा या दुर्विचार दशा में न जा पडे । यह धर्म शास्त्रकारों का मतलब है। और जिससे इहभविक किसी भी आपत्ति को वह न पाये, इतना ही नहीं लेकिन अपने कुटुम्ब और सारे संसार को, वह हिंसादिक को नहीं करनेवाला आदमी, इस तरह से परम सुखमय कर सके इसी लक्ष्यार्थ से शास्त्रकांगं ने स्वर्ग मोक्ष के कारण के नाम से धर्म दिखाया है। ऐसा यह सब कथन जो इन्सान पुनर्जन्म या भवांतरा नहीं माननेवाला है वैसे के ही मुख में शोभा दे सकता है । परन्तु जो इन्सान अपने को हिन्दु जाति में ही दाखल करना चाहता हो वह स्वर्ग--मोक्ष को वाच्यार्थ
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