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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीरजिन-श्राद्धकुलकम् संशोधक : उपाध्यायजी महाराज श्रीमद् यतीन्द्रविजयजी. यह कुलक धार रियासत के नीमारप्रान्तीय कुकसीकस्बे के ज्ञानमन्दिर के हस्तलिखित ग्रन्थसंग्रह से प्राप्त हुआ, जो पडिमात्रा की सुन्दर लिपी से एक पत्र में लिखा हुआ है। पत्र की लम्बाई १५ अंगुल और चोडाई ७॥ अंगुल की है । इसके प्रत्येक पृष्ट में १४ लाइन (पंक्तियां) और प्रतिपंक्ति में ५० या ५१ अक्षर हैं । पत्र में जैसा लिखा है, वैसी ही प्रतिलिपी यहां उद्धृत है । कुलक में कर्ता का नाम नहीं है, लेकिन मालूम पडता है कि इस कुलक के निर्माता आर्य परमदेव ही हैं। उन्होंने तुंगियापत्तन ( वर्तमान तालनपुर ) में चतुर्मास रह कर अपनी सुगमता के लिये इस कुलक को लिखा या बनाया है। इसमें भगवान् महावीरस्वामी के मुख्य दश श्रावकों का अति संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार दिया है: वाणियगामपुरम्मि य, आणंदो नाम गिहवई आसी। सिवनंदा से भज्जा, दस सहसा गोउला चउरो ॥१॥ निहि-ववहार-कलंतर-ठाणेसुं कणयकोडिबारसगं । सो सिरिवीरजिणेसर-पयमूले सावओ जाओ ॥२॥ -वाणिजग्रामपुरे आनन्दो नाम गृहपतिरासीत् , तस्य च शिवनन्दाभिधा भार्या, प्रत्येकं दश दश सहस्रगोसंख्यानि चत्वारि गोकुलानि, ४ कोटयो निधानगताः, ४ कोटयो व्यवहारगताः, ४ कोटयो व्याजगताश्च । एवं १२ कनककोटयश्च बभूवुः । पञ्च पञ्च शतानि हलशकटप्रवहणानाञ्चाऽऽनन्दस्य । स चैकादशश्राद्धप्रतिमाविधिवदाराध्य दुष्करतरतपोभिः संलिखिततनुः क्रमेणाऽनशनं प्रतिपद्य शुभतमभावोत्पन्नावधिज्ञानो लवणोदधावुत्तराशां मुक्तवा शेषदिक्षु पञ्चपञ्चयोजनशतानि, उत्तरतस्तु लघुहिमाचलं यावदूर्ध्वं च सौधर्मं यावदधस्तु रत्नप्रभा यावत्पश्यति जानाति । २० वर्षाणि धर्ममाराध्य मासिकान शनेन सौधर्मेऽरुणाभविमाने चतुःपल्योपमायुर्देवोऽभूत्ततो विदेहे शिवं यास्यति । For Private And Personal Use Only
SR No.521517
Book TitleJain Satyaprakash 1937 01 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1937
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size19 MB
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