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अतिक
શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ चरित्र ने दशार्णभद्र की दीक्षा के बाद भगवान के जनपद विहार का और कालान्तर में राजगृह जाने का लिखा है, परन्तु हमारा अनुमान है कि दशार्णभद्र की दीक्षा के बाद भगवान् लगभग ढाई तीन वर्ष तक काशी, कोशल, विदेह, पाञ्चाल आदि जनपदों में विचरे थे और केवलिपर्याय का १८ वाँ १९ वाँ और २० वाँ वर्षावास भी वैशालीवाणिज्यग्राम में ही किये थे।
___ (२१) लगभग तीन वर्ष तक मध्यप्रदेशों में विचरने के बाद भगवान ने अपने मुख्य केन्द्र की तरफ प्रयाण किया, समय भी हो गया था और कई श्रमणों की इच्छा विपुलाचल पर अनशन करने को भी थी, जो कि गजगृह से चम्पा की तरफ विहार आगे बढ जाने के कारण उस साल अनशन तो अधिक नहीं हुए हेांगे परन्तु दीक्षायें अनेक हुई थीं।
(२२) कई मुनियों के अनशन के कारण भगवान ने इस वर्ष भी राजगृह के आसपास ही विहार किया। स्कन्धक कात्यायन ने इसी वर्ष में विपुलाचल पर अनशन किया था, जिस समय भगवान् राजगृह में होने का भगवती सूत्र में लेग्व है ।
(२३) राजगृह का वर्षावास पूरा होने पर भगवान ने फिर विदेह की तरफ विहार किया। केवलि-जीवन के तीसरे वर्ष वाणिज्यग्रामनिवासी आनन्दगाथापति ने भगवान के निकट श्रादधर्म का स्वीकार किया था यह पहले कहा जा चुका है । आनन्द ने बीस वर्ष तक निज धर्म का आराधन करके अनशन किया था और अनशन के समय भगवान् वाणिज्यग्राम के दृतिपलास चैत्य में पधारे थे यह भी उपासकदशांग में लिखा है अतः २३ वें वर्ष भगवान् वाणिज्यगांव में थे यह निश्चित है, तो उस वर्ष का वर्षावास भी वहीं होगा इस में कोई शक नहीं ।
(२४) विदेह में आने के बाद भगवान ने एक बार मध्यप्रदेश में भी विहार किया होगा यह भी संभवित है, और वैशाली-बाणिज्यगांव में वर्षावास पर्याप्त हो चुके थे, अतः अगला वर्षावास भगवान ने मिथिला में किया होगा यही विशेषतया संभव है।
(२५) चम्पानिवासी श्रमणोपासक कामदेव ने पांचवें वर्ष श्राद्धधर्म धारण किया था और बीस वर्ष तक वह उसको पालन करता रहा था । बीसवें वर्ष कामदेव को किसी देवने उपसर्ग किया था और उस समय भगवान् महावीर चम्पा में थे ऐसा उपासक दशासूत्र से ज्ञात होता है । इस से निश्चित है कि मिथिला का वर्षावास व्यतीत कर के भगवान् चम्पा पधारे थे और चम्पा से राजगृह ही गये होंगे, क्योंकि गणधर प्रभास
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