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१४७.
મહાવીરચરિત્ર-મીમાંસા २० बीसवां वर्ष ( वि० पृ० ४९३-४९२) (८) वत्सदेश की तरफ विहार, बीच में आलभिया में समवसरण, ऋषिभद्र श्रमणोपासक की बात का समर्थन, कौशाम्बी में मृगावती और चण्डप्रद्योत की रानियों की दीक्षा । विदेह की तरफ विहार । वर्षावास वैशाली में ।
२१ इक्कीसवां वर्ष ( वि० पू० ४९२-४९१) (९) वर्षाकाल के बाद मिथिला की तरफ प्रयाण, वहां से काकन्दी, श्रावस्ती हो कर पश्चिम के जनपदों में विहार । अहिछत्र, गजपुर, काम्पिल्य, पोलासपुर आदि नगरों में समवसरण, काकन्दी में धन्य, सुनक्षत्र आदि की दीक्षायें, काम्पिल्य में कुण्डकौलिक और पोलासपुर में सहालपुत्र का निर्ग्रन्थ-प्रवचन--स्वीकार । वर्षावास वाणिज्यग्राम में ।
२२ बाईसवां वर्ष (वि०पू० ४९१-४९०) ___ (१०) मगधभूभि की तरफ विहार, राजगृह में महाशतक का श्रावक-धर्म स्वीकार । पापियों के प्रश्नोत्तर और महावीर की सर्वज्ञता का स्वीकार । वर्षावास राजगृह में।
२३ तेईसवां वर्ष (वि० पू० ४९०-४८९) . (११) पश्चिम दिशा में विहार । कचंगला में स्कन्धक कात्यायनप्रतिबोध, श्रावस्ती में चुलनीपिता और सालिहीपिता का श्राद्धधर्म-स्वीकार । वर्षावास वाणिज्यग्राम में।
२४ चौईसवां वर्ष (वि० पू० ४८९-४८८) (१२) ब्राह्मणकुण्ड के दृतिपलास चैत्य में समवसरण, जमालि का शिष्यपरिवार के साथ भगवान से पृथक् होना, वत्सभूमि की तरफ विहार । चन्द्र सूर्य का अवतरण । मगध की तरफ प्रयाण । राजगृह में समवसरण । पार्थापत्यों की देशना का समर्थन । अभयकुमार आदि का अनशन । वर्षावास राजगृह में ।
२५ पच्चीसवां वर्ष (वि० पू० ४८८-४८७ ) (१३) चम्पा को तरफ विहार । चम्पा में श्रेणिक पौत्र पद्म, महापद्मादि १० राजकुमार तथा जिनपालितादि अनेक गृहस्थों की दीक्षायें । पालितादि गृहस्थों का श्राद्धधर्म स्वीकार । वहां से विदेह-मिथिला की तरफ विहार । काकन्दी में क्षेमक, श्रुतिधर आदि की दीक्षायें । वर्षावास मिथिला में ।
- २६ छब्बीसवां वर्ष (वि० पू० ४८७-४८६) ... (१४) अंगदेश की तरफ प्रयाण, चम्पा में काली आदि श्रेणिक की : १० विधवा रानियों की दीक्षायें । पुनः मिथिला को विहार । वर्षावास मिथिला में।
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