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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ ति किया तो, राणीने प्रतीकार में बौद्ध भिक्षुओं की खूब खिल्लिये उडाई । पर आखिर राणी के गुरुओं के त्याग-वैराग्य और आत्मज्ञान के सामने राजा को अपना सिर झुकाना पड़ा । त्यागमूर्ति अनाथी मुनि की भेट और भगवान महावीर के अतिशयप्रधान उपदेश से राजा श्रेणिक ने बौद्धधर्म का परित्याग कर जैनधर्म को स्वीकार किया, तथा इसका प्रबल प्रचार किया। यहां तक कि उसने भारत और भारत के बाहिर अनार्य देशों में भी जैनधर्म का प्रचुरता से प्रचार किया। आपके महामंत्री राजकुमार अभयकुमार, जो बुद्धि, चातुर्य और राजतंत्र चलाने में बडे ही कुशल थे, इन्होंने भी श्रेणिक को इस सुकार्य में पूर्ण सहयोग दिया। यही नहीं किन्तु कुमार अभय ने तो अनार्यदेशान्तर्गत आर्द्रकपुर नगर के राजपुत्र आर्द्रककुमार को प्रतिबोध देने के लिए भगवान् ऋषभदेव की मूर्ति उसके पास भेजी, जिसके दर्शन मात्र से आर्द्रककुमार ने, प्रतिबुद्ध हो, भगवान महावीर के पास जा जैनधर्म की दीक्षा ली थी। सम्राट् श्रेणिक भगवान् व प्रभु-प्रतिमा की इस प्रकार भक्ति करता था कि नित्य प्रति स्वर्ण के १०८ अक्षत ( यव ) बनवाकर उनका स्वस्तिक करता था । और इसी कारण उसने तीर्थङ्कर नामकर्मोपार्जन किया । जब हम महाराजा श्रेणिक के परिवार की और देखते हैं तो पता पडता है कि उनकी रानिएँ पुत्र-पौत्रादिक बहुतसो ने भगवान् महावीर के पास जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण की थी, (ये उल्लेख भी यत्रतत्र मिलते हैं)। इत्यादि वर्णन से स्पष्ट सिद्ध है कि सम्राट् श्रेगिक भगवान् महावीर के भक्त राजाओं में मुख्य थे। __ ---( भगवती सूत्र ) (२) महाराजा कोणिक (अजातशत्रु )- ये भी एक साहसी, वीर राजा थे। ये महागजा श्रेणिक के उत्तराधिकारी थे और इनकी राजधानी चम्पानगरी थी। इनका वर्णन भी जैनागमों के साथ बौद्ध ग्रंथों में लिखा हुआ है। ऐतिहासिक साधनों से भी इनका अस्तित्व सिद्ध है । बौद्रे ने इन्हें बुद्धोपासक लिखा है । संभव है शायद ये भी अपने पिता की भांति कुछ काल तक बौद्र रहे हैं। पर ये अपने राजत्व-काल में तो कट्टर जैन ही थे । जैन-शास्त्रों में तो यहांतक लिखा है कि महाराजा कोणिक की ऐसी कठोर प्रतिज्ञा थी कि जब तक भगवान् महावीर कहां विराजते हैं इसका संवाद न सुन लें तबतक अन्नजल भी न लेते थे । इस से पाया जाता है कि सम्राट् कोणिक भी भगवान् महावीर के परम भक्त थे। -( श्री उत्पादिका सूत्र ) ४(३) महाराजा चेटक-ये एक ऐतिहासिक भूपति हैं। इनकी राजधानी विशाला ( बंगाल में ) नगरी थी। काशी कौशलादि १८ देशों के भूपति आपकी आज्ञा के आधीन For Private And Personal Use Only
SR No.521516
Book TitleJain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages231
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size102 MB
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