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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 63 ભગવાન મહાવીર મા દિવ્ય જીવન इंद्रभूति आदि ११ गगधर - भगवान के मुख्य शिष्य ब्राह्मण: उदायी, मेघकुमार आदि क्षत्रिय, शालिभद्र आदि वैश्य और हरिकेशी आदि शूद भगवान ने दी हुई दीक्षा का पालनकर शिव--सुख को प्राप्त कर सके । ऐसे ही देवानन्दा ब्राह्मगी और चन्दनबाला क्षत्रिय पुत्री थी, जिन्होंने साध्वी का जीवन व्यतीत किया । श्रावकों में राजा श्रेणिक आदि क्षत्रिय, सोमल आदि ब्राह्मण, आनन्द कामदेव आदि वैश्य और शकाल आदि शूद्र थे 1 भगवान् महावीर क्षमासागर और साम्यवादी थे । भगवान का जिन्होंने भी अपकार किया, उन्हें भयङ्कर कष्ट दिये, वीर महावीर ने उन्हें सदा क्षमा ही किया, और साथ ही उन्हें उपदेश देकर भवसागर से पार उतरने का मार्ग बताया। सबके साथ समान व्यवहार प्रदर्शित किया, पुरुष को मुक्ति का अधिकार है तो स्त्री को भी है; यदि ब्राह्मण उनका शिष्य है तो शूद्र भी उनका शिष्य है । देवता ने महावीर को कई बार अपनी सेवायें अर्पित कीं, और इन्द्र ने कई बार अपने आपको सेवा के लिए उपस्थित किया । फिर भी भगवान का उनके प्रति विशेष राग न था, वे उन पर अधिक प्रसन्न न थे, इधर संगमदेवता, गोशाला, और चण्डकौशिक सर्प आदिके कारण प्राणान्त कष्ट मिले, उन पर उन्होंने कोई द्वेष - वैरभाव नहीं रखा। भगवान ने सभी को अपने उपदेश का पान कराया । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ક વ્ય अप्पणा सच्चमेसेज्जा मिर्त्ति भूसु कप्पe । भगवान् वीर के प्रत्येक आदर्श का हम अनुकरण करें, हममें वीर महावीर की तरह सब शक्तियां संचारित हो, हम वीर के सच्चे पूजारी बन कर दिखायें, बस यही अभिलाषा ! અંતઃકરણપૂર્વક સત્યની અન્વેષણા કર ! मने (सर्व) व ५२ मैत्रीभाव धारण ४२ ! —શ્રી ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર For Private And Personal Use Only २४१
SR No.521516
Book TitleJain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages231
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size102 MB
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