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समीक्षाभ्रमाविष्करण
। याने बिग बगतानुयायी अजितकुगार शास्त्रीए " श्वेताम्बरमानसमा "मां
आलेखेल प्रश्ननो प्रत्युत्तर लेक आचार्य महाराज श्रीमद् विजयलावण्यमरिजी ::: m : ::
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(गतांकथी चालु)
साधु आहारपान कितने वार करे ?
आगल जता लेखक लग्वे छे "किसी ३. वैयावृत्य करनारे १नार खाबानो मुनिकी सेवा करनेवाला साधु इस लिये नियम तोडीने बे वार खावं । अपने एकवार भोजन करनेके नियमको ४. तपस्या करतां वेयावच्च अधिक नथी तोडकर दो बार दिनमें आहार करे क्योंकि एवं सूचन । तप करनेसे वैयावृत्य उत्कृष्ट है। यह भी
हवे आपणे आ बाबतीनो अनुक्रमे अच्छे कौतुककी बात है । इस तरह तो
विचार करीए। साधुओंको तपस्या छोडकर केवल वैयावृत्यमें लगजाना चाहिये क्योंकि भोजन भी दो बार प्रथम बाबतमां जणाववानुं जे हमेशा कर सकेंगे और फल भी तपस्थासे अधिक एक ज वार खावु आवो नियम याने प्रतिज्ञा मिलेगा।
दीक्षा लेती बरखते अथवा पालथी करल ज आ लेखकना लग्वाग परथी नीचे प्रमाणे नथी। दीक्षा समये जेम सामायिक बगेरना चार बाबतो तरी आवे छे:----
आलावा उच्चगवामां आवे छे तेम, हमेशा एक १. साधुओने हमेशा १ बार खावानो ज बार खावु आवो कोई आलावो उच्चरावेलो नियम होय छे. अने बे वार वापरवामां ते होता नयी । तेम पाटलथी प। हरेक साधुओने नियमनो भंग थाय छे ।
एक ज वार खावू जोईए ए सम्बन्धना आलावा २. तपस्या करतां वेयावच्चगां वधारे उच्चराववानो उल्लेख पण जोवामां आवतो लागले माटे तप छोडी छोटीने वेयावनगांज नथी। माटे तमाग मुनिराजोने हमेंशा एक ज जोडावू जोइए।
बार बापरवानो नियम छे, आq कहेवू ते
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