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९ - ज्ञानप्रबोध का
जिनसेनसूरि ( महापुराण के कुन्दकुन्दाचार्य । देखिए --
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हुआ ।
શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
શ્રાવણ
“ खंडेलवाल – उत्पत्ति ” प्रकरण जाहिर करता है कि रचयिता ) – शिष्य गुणभद्रजी - शिष्य जिनचंद्रसूरि - शिष्य
चेला श्रीगुणभद्रजी, गुरु आज्ञाकी धार ॥ आदि अंत तक सब कथा, तिनहीका परिपट्टमें, सबमुनिका सरदार ||
भये मुनि जिनचंदजी, शिष्य भये तिनके सही, ध्यानिनमें उत्तम भये,
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रचदीनी विस्तार ।। १५ ।।
(३) आ० कुन्दकुन्दकी असंकलित शिष्यपरंपरा
संयमपालन हार ॥ १६ ॥ कुन्दकुन्द मुनिराज || जैसे सिरके ताज ॥
१८ ॥
-श्रीयुत् नाथुराम प्रेमीकृत, विद्वदूरत्नमाला, पृष्ट-४
१-आ० कुन्दकुन्द के वंश में आ० उमास्वाति हुए । उनका शिष्य बलाकपिच्छ
- श्र० बे० शि० नं० ४०, ४२, ४७, ५०, १०५, १०८ ये सभी शिलालेख इस विषय में एकमत हैं कि आ० उमास्वाति आ० कुन्दकुन्द के शिष्य नहीं थे । किन्तु उनकी परंपरा में वंशाद्भव थे। किसी भी लेख में शिष्य शब्द लिखा नहीं है । और बलाकपिच्छ को आ० उमास्वाति के शिष्यरूप से स्पष्ट लिखा है ।. २ - आ० कुन्दकुन्दका वंश -- क्रम इस प्रकार है
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भगवान् महावीर - गौतमस्वामी- सुधर्मस्वामी जम्बूस्वामी - विष्णु -- अपराजितनन्दिमित्र – गोवर्द्धन-भद्रबाहुस्वामी - क्षत्रिय - प्रोष्टिल - गंगदेव – जय - सुधर्म - विजय- विशाख--- बुद्धिल - धृतिषेण - नाग - सिद्धार्थ - नक्षत्र - पाण्डु - जयपाल- कंसाचार्य - द्रुमषेण - लोह सुभद्र-जयभद्र - यशोबाहु ( भद्रबाहु स्वर्गगमन वीरनि० सं० ६८३ ) कुम्भ - विनीत- हलधरवसुदेव -- - अचल - मेरुधीर - सर्वज्ञ - सर्वगुप्त - महिधर धनपाल - महावीर वीर- कोण्डकुन्दउमास्वाति ( न कि - उमास्वामी ) - गृद्वपिच्छ (द्वितीय नाम बलाकपिच्छ ) - समन्तभद्र - शिवकोटि - देवनदी - जिनेन्द्रबुद्धिपूज्यपाद - भट्टा कलंक - जिनसे नसूरि ( पुराण - कर्ता ) - गुणभद्र) (महापुराणकर्ता ) - पुष्पदंत और भूतबली ( कर्म्मप्राभृत - षडखंडागम के रचयिता ) - अर्हदबली ( आपने सेनसंघ जन्दिसंघ - गग वगैरह के भेद किये ) इत्यादि ।
- श्र० ब्रे० शि० नं० १०८ श्लोड ७ से २७, शकसं० १३२०
क्रमशः
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