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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir mourna ૧૯૯૨ દિગમ્બર શાસ્ત્ર કેસે બને ? २-पद्मनंदी-ऐसा कहा जाता है कि-"सकषायप्राभृत” और “कर्मप्राभृत" पर आ० पद्मनंदीने सब से पहले टीका बनाई थी। आ० पद्मनंदी आ० कुन्दकुन्द का दूसरा नाम मात्र है। षड्भाषाकविचक्रवर्ति दि० आ० भूषणसूरि ने संस्कृत प्रतिबोधचिन्तामणि में ग्रन्थ के प्रारंभ में कुन्दकुन्दाचार्य को कथा में बताया है कि---.. पद्मनंदी नाम का एक हिंसक कापालिक था। उसका अपर नाम कुंदकुंद चक्रवर्ति भी बतलाया जाता है। वह गले में शिवलिंग पहनता था और हाथ में मयूरपिच्छ रखता था। मूलसंघ के उत्पादक आचार्य पद्मनंदी याने कुन्दकुन्द भी नग्न रहते थे, मयूरपिच्छ रखते थे। बाद में आपने उस हिंसक कापालिक की मयूर-शृङ्गी संज्ञा रख दी। थोडे अरसे में आपका नाम भी “ गृद्धपिच्छ" जाहिर हुआ। आपके गुरु का नाम अनंतकीर्ति है। आपका समय वि० सं० ७५३ का है। --जैन गजट, वर्ष १४, अंक २५, के अनुसार -श्वेताम्बरमतसमीक्षा-दिग्दर्शन, पृट-९८ श्रवणबेलगोल के शिलालेखों में भी कुन्दकुन्दाचार्य का दूसरा नाम पद्मनंदी उत्कीर्ण है।४७ ३--एलाचार्य,८४-वक्रग्रीव-न मालूम ये दोनों नाम लाक्षणिक हैं या सामान्य हैं। ५--गृद्धपिच्छइस नाम के लिये कहा जाता है कि "कुन्दकुन्दाचार्यस्य महाविदेहगमने नभश्चारेऽन्तरा पिच्छिका पतने गृद्धपिच्छपिच्छिकाग्रहणात् गृद्धपिच्छ इति नाम।" (किसी समय) कुन्दकुन्दाचार्यजी महाविदेह क्षेत्र में जा रहे थे। आकाश में जाते जाते आपकी मोरपिच्छिका गिर गई अतः आपने गीधके पिच्छ उठाकर बगल में रक्खे और आगे चल दिये, अतः आप गृद्धपिच्छ नाम से ख्यात हुए। -(दर्शनप्राभृतवृत्ति) ४७ दिगम्बरसमाज में पद्मनंदी नाम के अनेक आचार्य हुए हैं १-कुन्दकुन्द, २-चन्द्रप्रभशिष्य, ३-त्रैवेद्यदेवशिष्य, ४-नयकीर्तिशिष्य ५-शुभचन्द्रशिष्य, त्रिराशिक-पद्मनंदी, वगैरह । ४८ एलाचार्य नामके अनेक दि० आचार्य हुए हैं-- १-कुन्दकुन्द, २-वीरसेनाचार्य के ज्ञानगुरु, ३-ज्वालामालिनी स्तोत्र के रचयिता भट्टारक । कल्पसूत्र में श्री महागिरि और श्री सुहस्तिसूरि का एलापत्य गोत्र बताया है। ४९ दिगम्बर समाज में ३ वक्रप्रीवाचार्य हुए हैं१-कुन्दकुन्द, २-सिंहनंदीशिष्य, ३-अकलंकदेवशिष्य । For Private And Personal Use Only
SR No.521513
Book TitleJain Satyaprakash 1936 07 SrNo 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages52
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
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